जिन के सिर पर होता कोहिनूर चैन से होते वही दूर
काव्य साहित्य | कविता दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'30 Jan 2008
कई लोग लड़ते हैं जंग
सभी को हमेशा सिंहासन
नसीब नहीं होता
अगर मिल भी जाये तो
उस पर बैठना कठिन होता
चारों तरफ फैला उनका नाम
कदम-कदम पर उनका चलता
दिखता है हुक्म
पर यह एक भ्रम होता
चैन और सब्र से होता दूर
मन का गरीब होता है
तारीख है गवाह इस बात की
खतरे में वही जीते हैं
जिन के सिर कोहिनूर होता
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