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जिसका हेतु है मानव...

अगर कोई पक्षी कविता लिखता 
तो ये ज़रूर लिखता 
कि एक आंदोलन हो 
हमारे मिटते अस्तित्व पर।
हर नुक्कड़ पर एक तमाशा 
निर्दोष मौतों पर 
और ....हर शिक्षण संस्थान के आगे 
हो एक आमरण अनशन 
लुप्त हो रही प्रजाति पर 


बेबुनियाद भाषणों 
और नारों में !
थोड़ी सी आवाज़ 
शामिल हो...
आदमी की पीड़ा के ज्ञापन में 
दो शब्द 
हमारे प्रति 
बेरहम आदमी की  सज़ा के 
तथा विशाल सभाओं,
गोष्ठियों में केवल दो पंक्तियाँ शामिल 
हों टूटते परिवेश की 


सरकारी फ़ाइलों में 
हमारे आश्रयदाताओं 
पेड़, नदी, आदि के प्रति औपचारिक 
हस्ताक्षर न हों!
आकाश धुएँ का घर न बने 
ऐसा एक संकल्प हो
हम कभी 
कविता में रोना नहीं लिखते 
लिखते हैं अस्तित्व की पीड़ा 
जिसका हेतु है मानव!

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