जुदाई
काव्य साहित्य | कविता दीपा जोशी3 May 2012
मिलन की चाह में
जुदाई का
अपना है मज़ा,
ये बात और है
सब मानें इसे एक सज़ा ।
मिलन के नशे से भी
बड़ा है नशा जुदाई का,
इसके उतरने की अदा का
नहीं है कोई पता ।
खोया रहता है जब मन
किसी की जुदाई में
हर चेहरे पे
वही चेहरा
दिखाई देता है
हो अकेला
या
फिर महफ़िल में
दिल है कि
बस उनके क़रीब रहता है ।
है मिलन में मज़ा
तो इसमें बेकरारी है
वो सुबह है
तो ये
रात घनी काली है
प्यार की राह के
ये मुसाफ़िर ऐसे
एक भी ना हो
तो वह सफ़र अधूरा है।
इसका दामन है
सागर की लहरों जैसा
मिलन की आस के
मोतियों का है जिसमें डेरा
यूँ तो नहीं इसकी थाह कोई
फिर भी
हर किनारे पर
दिखता है मिलन का सवेरा।
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