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जुनून

"मनोहर काका, आप तो समझदार हैं, इस गाँव के संरपंच भी हैं। हमको जानते-मानते भी हैं।।," त्रिलोकी नाथ ने गिड़गिड़़ाते-समझाते हुए कहा।

मनोहर काका ग़ुस्से में तमतमा कर बोले, "देख त्रिलोकी, तुम्हारी बेटी पढ़ने के लिए इस गाँव से बाहर नहीं जाएगी। काम चलाने भर तो पढ़ाई कर ही चुकी है, चिट्ठी-पत्री तो लिख ही लेती है, अब क्या कलक्टर बनाएगा? उसके हाथ पीले कर दे, घर-गृहस्थी सम्भाल लेगी।"

त्रिलोकी नाथ ने सरपंच के पाँव में गिर कर कहा, "मेरी बड़ी बेटी मालती कहती है कि जब तक कॉलेज में मेरा नाम नहीं लिखाएगा, तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगी। सुबह से उसने कुछ भी नहीं खाया है," त्रिलोकी नाथ फफक कर रो पड़े।

सरपंच ने अपने पंच के सदस्यों को आँख मारी और त्रिलोकी नाथ से कहा, "मैं तो तुम्हारा पक्ष ले लूँगा, मगर पंच के सदस्यों के कोप का भाजन तुमको बनना पड़ेगा। टकराना स्वीकार है तो आगे बढ़।"

त्रिलोकी नाथ के कहते ही "टकराना स्वीकार है", पंच के सदस्यों को ग़ुस्सा आ गया और कहा, "नहीं ऐसा हमलोग हरगिज़ नहीं होने देंगे।"

त्रिलोकी नाथ के वहाँ से चले जाने के बाद सरपंच ने अपने पंच के सदस्यों से कहा, "इसकी बेटी को पढ़ने का जुनून है और इसको पढ़ाने का जुनून है। इस जुनून का ख़ून करना ही पड़ेगा।"

सरपंच और उसके सदस्यों ने राजनीति के तहत एक लड़के को ज़िम्मेवारी दी।

त्रिलोकी नाथ जब अपनी बेटी के साथ लाठी लेकर निकले तो कहीं भी विरोध नहीं हुआ।

लड़के की थोड़ी सी मेहनत के बाद त्रिलोकी नाथ की बेटी के सिर पर इश्क़ का ऐसा जुनून सवार हुआ कि सामने अपना और अपने पिताजी के जुनून का ख़ून कम पड़ने लगा।

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टिप्पणियाँ

पाण्डेय सरिता 2021/10/20 10:04 PM

हे भगवान ! विचित्र स्वभाव मानव का

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