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काहे को भेजी परदेश बाबुल

मंगलम भगवान विष्णु मंगलम गड़रुध्वजम
मंगलम पुण्डरीकाक्षं मंगलायो तनो हरि।

"चलिए अब कन्यादान पूर्ण हुआ अब आपके आगे के जो भी रस्में हैं, पूरा कर, ठीक छह बजे विदाई का मुहूर्त है उसमें कन्या की विदाई कर दीजिए," पंडित जी ने भाँवर की रस्म को पूरा करने के पश्चात मनोहर को निर्देश दिए।

अमिता की आँखें झरने की तरह बह रहीं थीं; सोच रही थी पापा अपने दिल पर पत्थर रख कर अपनी लाड़ो को विदा करेंगे। अपने से एक पल को भी दूर न करने वाले पापा कैसे उसे विदेश के लिए भेजने को तैयार हो गए? उसे बहुत आश्चर्य हो रहा था। काहे को भेजी परदेश बाबुल — उसने बहुत विरोध किया था।

"पापा मैं आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगी। प्लीज़ पापा आप इण्डिया में कहीं भी शादी कर दें; मैं तैयार हूँ पर विदेश नहीं जाऊँगी। आप दोनों का मेरे सिवा कोई नहीं है, कौन देखभाल करेगा आपकी?"अमिता बहुत रोई थी पर उसे मालूम है पापा जो निर्णय करते हैं वो बहुत सोच-समझकर करते हैं और फिर उसे कभी नहीं बदलते।

विदाई के समय भी वो बहुत रोई थी पर पापा के चेहरे पर शिकन नहीं थी। उसे मालूम था उसके पापा बहुत स्ट्रांग हैं, सख़्त हैं। उसके जाने के बाद बहुत रोयेंगे; सामने मुस्कुराते हुए दिख रहे हैं ताकि उनकी लाड़ो को दुःख न हो पर अमिता को मालूम है; उसके बिना उसके मम्मी-पापा बिलकुल अकेले हो जायेंगे। कौन करेगा उनकी देखभाल? अमिता का दिल बैठा जा रहा था।

एयरपोर्ट पर अमिता अपने पति के साथ विदेश जाने को तैयार थी लेकिन उसका मन बहुत भारी था, बहुत दुखी, क्यों न हो? पहली बार अपने मम्मी-पापा को छोड़ रही थी। जाने कब आना हो? कोरोना के इस भय भरे माहौल में बहुत बुरे-बुरे विचार उसके मन में आ रहे थे।

उसने देखा पापा सूनी-सूनी आँखों से एयरपोर्ट के डिस्प्ले बोर्ड को देख रहे थे। मम्मी उसे बहुत सारे निर्देश दे रही थी पर उसका मन कहीं और था।

जैसे ही यात्रियों के अंदर जाने की घोषणा हुई उसने देखा, पापा की आँखें डबडबा आईं। उसका कलेजा मुँह को आ गया; ज़ोर से पापा से लिपट कर फफक कर रो पड़ी। उसकी आँखों में यही प्रश्न था "काहे को भेजा परदेश बाबुल अपनी लाड़ो को।"

उसके पापा उसके कान में कह रहे थे, "बेटा तेरा सुख ही मेरा सुख है, मेरी चिंता मत करना ख़ुश रहना।"

आज अमिता को लग रहा था बेटियाँ कितनी मजबूर होतीं हैं। उन्हें न चाहते हुए भी अपने माँ-बाप से दूर होना पड़ता है।

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