कालू सियार की शैतानी
बाल साहित्य | बाल साहित्य कहानी रीता तिवारी 'रीत'15 Jun 2021 (अंक: 183, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
कालू सियार सुबह से ही जंगल में घूम रहा था। वह बस इसी ताक में था कि कब जंगल में आग लगाए। सबसे पहले गौरैया के पास गया और बोला, "गौरैया दीदी पता है कल गिलहरी तुम्हारी ख़ूब बुराई कर रही थी। कह रही थी गौरैया तो बड़ी लालची है। वह छज्जे पर फैलाए हुए सारे दाने ख़ुद ही खा जाती है और किसी को खाने नहीं देती।"
गौरैया ने पूछा, "क्या तुम सच बोल रहे हो?"
कालू ने कहा, "क्या तुम को हमारे ऊपर भरोसा नहीं है?"
गौरैया बोली, "अरे कालू भैया मैं तुम्हारे ऊपर भरोसा नहीं करूँगी तो किस पर करूँगी।"
फिर वह गिलहरी के पास गया।
कालू बोला, "गिलहरी दीदी पता है गौरैया तुम्हारी ख़ूब बुराई कर रही थी। कह रही थी कि गिलहरी की तो आदत ही बहुत ख़राब है। वह हमेशा दानों को स्टोर करने में ही लगी रहती है।"
गिलहरी ने पूछा, "क्या तुम सही बोल रहे हो।"
कालू बोला, "क्या तुम्हें हमारे ऊपर भरोसा नहीं है?"
गिलहरी ने कहा, "अरे! कालू भैया क्या ऐसा हो सकता है?"
फिर अगले दिन जब दोनों छज्जे पर दाना खाने पहुँची तो आपस में भिड़ गईं।
गौरैया ने पूछा, "तुमने मुझे लालची क्यों कहा? क्या तुम दाने नहीं खाती हो।"
गिलहरी ने कहा, "तुमने भी तो मुझे लालची कहा था। क्या मैं ही सब दाने स्टोर करती हूँ?" और फिर दोनों एक दूसरे को नोचने लगीं और भिड़ गईं।
कालू को बहुत मज़ा आ रहा था। वह दूर से देख रहा था और हँस रहा था। तभी उधर से दोनों को लड़ते देख सोना हिरनी आई।
सोना ने पूछा, "क्या बात है दोनों आपस में लड़ क्यों रही हो?"
गिलहरी ने बताया, "अरे सुना! दीदी गौरैया मुझे लालची कह रही थी।"
गौरैया ने दलील दी, "यह भी मुझे लालची कह रही थी।"
सोना ने दोनों से पूछा, "तुम दोनों ने सुना था एक दूसरे की बुराई करते हुए?"
दोनों बोलीं, "नहीं. . . नहीं हमें तो कालू ने बताया था।"
सोना ने समझया, "उसकी तो आदत है झगड़ा लगाने की। उधर देखो वह मज़े ले रहा है।"
गौरैया ने ग़ुस्से में पूछा, "क्या कालू ने हमें बेवकूफ़ बनाया? कितना दुष्ट है; चलो मज़ा चखाते हैं।"
गिलहरी भी बोली, "हाँ, हाँ चलो दोनों मिलकर मज़ा चखाते हैं।"
दोनों ने एक योजना बनाई। जब कालू सियार सो रहा होगा उसकी पूँछ कुतर देते हैं।
जब कटी हुई पूछ लेकर घूमेगा तो मजा आएगा।
दूसरे दिन जब कालू सियार सो रहा था, गिलहरी ने उसकी पूँछ काटनी शुरू की और छोटी कर दी और दोनों भाग गईं। जब वह जागा तो जंगल में घूमने गया सब उस पर हँस रहे थे।
"सब में झगड़ा लगाता था; देखो किसी ने इसकी पूँछ ही काट दी।"
लोगों को हँसते देख उसने जब अपनी पूँछ देखी तो उसका चेहरा उदास हो गया।
वह रोने लगा आज उसे अपने कर्मों का फल मिल गया था।
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टिप्पणियाँ
Rajnandan Singh 2021/06/08 10:08 AM
शिक्षाप्रद सुंदर कहानी।
कृपया टिप्पणी दें
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पाण्डेय सरिता 2021/06/08 06:12 PM
वाह! बहुत खूब बाल कहानी