काँटों से यारी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुषमा गुप्ता12 Apr 2017
कर यारी किसने रोका है
पर यारी काँटों से करना
फूल बदलते हर मौसम
काँटों ने कब रंग बदला है
......कर यारी किसने रोका है।
सरल सजीले और सुगंधित
फूल लुभाया करते मन को
पर तू ये सोच के चुनना
चार दिन का ये झोंका है
......कर यारी किसने रोका है।
कुरूप कँटीले लगे शूल से
बींधे तेरे नरम पोरों को
पर फिर भी फूल-से अच्छे
भ्रम से जिसने मन बींधा है
......कर यारी किसने रोका है।
कड़वी कर्कश कँटीली वाणी
माना लगे अप्रिय कर्णों को
पर उस मीठे बोल से अच्छी
जो निपट झूठ के रस घुला है
......कर यारी किसने रोका है।
मिल फूल से...फूल भी अच्छे
पर फूलों से यार न चुनना
चुनना सीरत के सच्चे को
हर आँधी जो साथ खड़ा है
......कर यारी किसने रोका है।
पर यारी काँटों से करना।
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