कच्चा पक्का मकान था अपना
शायरी | ग़ज़ल चाँद शुक्ला 'हदियाबादी'1 Mar 2019
कच्चा पक्का मकान था अपना
फिर भी कुछ तो निशान था अपना
मैं था और साथ मेरी तन्हाई
सिर्फ़ माज़ी था दरमियान अपना
तुम भी थे साथ और ज़माना भी
एक कड़ा इम्तिहान था अपना
क्यों न उसको पुकारता या रब
सूना सूना जहान था अपना
"चाँद" था और ख़ला की वीरानी
एक फ़क़त आस्मान था अपना
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
- अम्बर धरती ऊपर नीचे आग बरसती तकता हूँ
- कच्चा पक्का मकान था अपना
- किस तरह ख़ाना ख़राबां फिर रहें हैं हम जनाब
- छुप के आता है कोई ख़ाब चुराने मेरे
- जब पुराने रास्तों पर से कभी गुज़रे हैं हम
- तुझे दिल में बसाना चाहता हूँ
- धुँधली धुँधली किसकी है तहरीर है मेरी
- मेरे गीतों मेरी ग़ज़लों को रवानी दे दे
- साँप की मानिंद वोह डसती रही
- हम खिलौनों की ख़ातिर तरसते रहे
- ख़ुशबुओं की तरह महकते गए
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं