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कहाँ हैं वो लोग

कहाँ हैं वे लोग
जो राणा प्रताप के साथ
उसके साथ के लिए
ना कि पद के लिए
ना ही धन के लिए
ना कि और लोभ के लिए
महलों-गढ़ों को छोड़ कर
रनिवासों के अनेक सुखों को छोड़कर
जंगल जंगल भटकने के लिए
राणा प्रताप के साथ चले आए
ना पता था भविष्य का
ना पता था निवास का
ना पता था आराम का
जंगल जंगल भटकने के लिए
घास की रोटियाँ खाता हुआ
राजवाड़ा देखते रहने के लिए
अपने भीतर के विश्वास के लिए
राणा प्रताप की तेज तलवार के लिए
राणा की सौगात के लिए
जंगल जंगल भटकने के लिए
चले आए किलों से बाहर
कहाँ हैं वे लोग?
अब तो जरा सा भास हुआ नहीं
कि दल बदल लेते हैं)
अपने अरमान बदल लेते हैं
घर मकान बदल लेते हैं
अब व्यक्ति से नहीं, उसके द्वारा
दिलाए पदों से दिलाए कदों से
वफादारी है, उम्मीदवारी है।
गिरगिट भी कुछ वक्त लेता है
रंग रोगन बदलने में
लोग कहाँ से आए हैं
कहाँ जायेंगे?
एक हुजूम है चापलूसों का
नये मालिक के आगे दुम हिलाते हैं
पुरानों पे गुरर्राते हैं।
कोई राज़ उनका खुल ना जाए
सूट व टाई पहन कर आते हैं
जाने कब जान पायेंगे
रंग बदलना आसान है
उनके लिए सम्हलना होगा
लेकिन गर्त में गिर जायेंगे
घास की रोटियाँ भी न पायेंगे
कहाँ हैं वे लोग जो
राणा प्रताप के साथ
उसके साथ के लिए
जंगल जंगल भटकने के लिए
रजवाड़ों से बाहर निकल आए थे

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