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 कहने लगे बच्चे कि

हम सोचते ही रह गये और दिन गुज़र गए।
जो भी हमारे साथ थे जाने किधर गए॥


बेटी की बिदा हो गई शहनाई भी बजी।
फिर ऐसा क्या हुआ सभी सपनें बिखर गए॥


घर से गए जो एक बार आज के बच्चे।
वापिस वे ज़िंदगी में दुबारा न घर गए॥


महफ़िल में तेरी लोग सभी झूम रहे थे।
पहुँचे जो हम तो सभी के चेहरे उतर गए॥


समझा के थक गए तो स्वयं मौन हो गए।
कहने लगे बच्चे अब पापा सुधर गए॥


आज़ाद मुल्क हो गया ऐसा हुआ है क्यों।
कुछ लोग इस तरफ रहे कुछ क्यों उधर गए॥


फ़ुर्सत नहीं मरने की बहुत काम है बाकी।
फ़ुर्सत मिली ऐसी कि वे फ़ुरसत में मर गए॥

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