अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

कैसे मनाते हैं होली, हिन्दी सोसाइटी सिंगापुर के बच्चे

हिन्दी सोसाइटी सिंगापुर में भारतीय बच्चों को हिन्दी पढ़ाने के साथ साथ तीन प्रमुख त्योहार - होली, रक्षा बंधन और दीपावली बड़े उमंग से मनाते हैं। विद्यालय शनिवार को लगता है इसलिए होली के निकटतम शनिवार को आधा दिन पढ़ाई होती है। उसके बाद आरंभ होता है होली के अवसर पर तैयार किया गया विशेष कार्यक्रम।

विद्यालय के विशाल हॉल में सभी बच्चे कक्षानुसार पंक्तिबद्ध होकर बैठते हैं। मुख्य अतिथि के आते ही सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया जाता है। जिसमें बच्चे होली पर आधारित कविता, नाटक, भाषण और होली नृत्य प्रस्तुत करते हैं। “होलिया में उड़ो रे गुलाल....” की स्वर लहरी के साथ करतल ध्वनियाँ वातावरण को उल्लासमय बना देती हैं। रंग-बिरंगे परिधानों में सजे बच्चे सबका मन मोह लेते हैं। इसके बाद होली की पहेली, गुलाल से चेहरा रँगने की प्रतियोगिता आदि संपन्न होती है। समस्त अध्यापिकाएँ मिलकर लोक गीत पेश करती हैं, “आज बिरज में होली रे रसिया....” ढोलक की थाप के साथ क्या समाँ बँधता है, बताने की आवश्यकता नहीं!
इसी बीच अध्यापिका अपनी कक्षा के बच्चों के गुलाल का टीका लगाती है, इसका मुख्य कारण है कि स्वच्छता बनी रहे वरना सिंगापुर और होली....... ना, बाबा ना!! बड़ी शालीनता से होली मनाते हैं। काश! भारत में भी ऐसा होता। घर जाते समय सबको मिठाई मिलती है। बच्चे भरपूर आनंद उठाते हैं। अन्त में जलपान का भी प्रबंध किया जाता है।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

महादेवी का साधना दीप
|

वेदनाभूति का चरम सौन्दर्य महादेवी जी के…

ये तो होता ही है
|

इंडियाज़ डॉटर बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं