कल, आज और कल
काव्य साहित्य | कविता रचना श्रीवास्तव13 Mar 2014
पुराने पल
शाखों से झड़ते रहे
कल, आज और कल
एक मैली सी
गठरी में
कुछ सहेज के रखा था
कुछ पल थे
यादों के
ग़म कोई जो खटका था
पीड़ा के शूल
दिलों में गड़ते रहे
कल, आज और कल
बीते लम्हे
खोले तो
झरना सा बह उठा
भीगा
आज तुम्हारा
हौले से कह उठा
नाहक तुम
अतीत से लड़ते रहे
कल आज और कल
पुराने पल
शाखों से झड़ते रहे
कल आज और कल
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