अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

कमाल कोरोना का

(नारायण! नारायण! कहते खड़ताल बजाते देवर्षि नारद क्षीरसागर में शेषशायी, निद्रानिमग्न विष्णु भगवान के विष्णुलोक में पहुँचकर माता लक्ष्मी के चरणों में नमन करते हैं)

लक्ष्मी जी -

देवर्षि आज आप इधर कैसे पधारे? कोई ख़ास प्रयोजन है क्या?

देवर्षि नारद -

माता! पूरे ब्रह्मांड में कोरोना का ख़ौफ़ छाया है। इस बार भगवान शिव शंकर ने सृष्टि के विनाश का कौन सा स्वांग रचा है?

लक्ष्मी जी -

देवर्षि आप ये कैसे कह रहे हैं कि विनाश के लिये ये स्वांग रचा गया है?

देवर्षि नारद -

माता! आप इतनी भोली तो नहीं हैं, आप सब जानती हैं- चीन, इटली, स्पेन से लेकर अमरीका ही नहीं सब देशों में कोरोना का आतंक है। जितना लोग मर नहीं रहे हैं उससे ज़्यादा इस रोग से प्रभावित होकर त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।

लक्ष्मी जी -

(मुस्कराते हुए)

ये भोलेनाथ का क़हर नहीं है। ये तो भगवान विष्णु का क्रिया-कलाप है।

(नारद जी ने देखा कि इन दोनों के वार्तालाप को सुनकर भगवान विष्णु जग गये हैं और मंद-मंद मुस्करा रहे हैं। देवर्षि नारद भगवान की चरण वंदना करते हैं और प्रश्नवाचक दृष्टि से दोनों की ओर देखते हैं)

लक्ष्मी जी -

देवर्षि ये सच है कि शिव शंकर पृथ्वी के विनाश के लिये वातावरण सृजन कर रहे हैं। वह ग्लोबल वार्मिंग के द्वारा पर्यावरण की उथल-पुथल करके सृष्टि के विनाश के संकेत दे रहे हैं पर कोरोना वायरस का इससे कोई लेना- देना नहीं है।

देवर्षि नारद - 

माता ये आप क्या कह रही हैं? 

(दोनों हाथ जोड़ कर)

भगवन! आप ही बताइये कि माजरा क्या है?

भगवान विष्णु -

(हँसकर बोले)

देवर्षि! कुछ समय पूर्व देवराज इंद्र मेरे पास आये थे। वह भारतीय संस्कृति के ह्रास को देख कर बहुत चिंतित थे। कहने लगे - 

“भारत में हिंदू संस्कृति का विनाश निश्चित है। एक ओर ईसाई लोग ग़रीब लोगों की सहायता करके और धन का लालच देकर हिंदुओं को ईसाई बना रहे हैं एवं मुसलमान लवजिहाद या आतंकी घटनाओं के द्वारा हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। दूसरी ओर हिंदुओं का एक वर्ग स्वयं को बौद्ध कहकर अपने को अलग मानता है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित युवा नास्तिक का चोला पहन कर हिंदुत्व की खिल्ली उड़ा रहे हैं। हमारे देखते-देखते सनातन धर्म रसातल में चला जायेगा और हमें यज्ञ करके शक्ति प्रदान करने वाले लोग समाप्त हो जायेंगे। देव संस्कृति की जगह रक्ष संस्कृति का प्रचार होगा। प्रभु! आप जागिये, कुछ कीजिये।”

देवराज की व्याकुलता देखकर मुझे दया आ गई। मैंने ध्यान से देखा तो पाया कि चीन में लोग हर प्रकार के जानवर काटकर खाते हैं और उससे गंदगी फैलती है। मैंने उनकी लैब में एक ऐसे वायरस को डाल दिया जिसे वे तुरंत नहीं समझ पाये। जब वह बढ़ने लगा तो शुरू में उन्होंने छिपाने की कोशिश की। अब जब वह वायरस बेक़ाबू हो गया और लोग धड़ाधड़ मरने लगे तो हाहाकार मच गया। एक-एक करके सारे देश प्रभावित हो रहे हैं।

(कह कर विष्णु भगवान चुप हो गये)

देवर्षि नारद -

 प्रभु! मुझे कुछ समझ में नहीं आया। इसके द्वारा भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार कैसे होगा?

लक्ष्मी जी -

देवर्षि! लगता है आपने अपने ज्ञानचक्षु बंद कर लिये हैं और दुनिया के समाचार जानने का प्रयत्न नहीं करते।

देवर्षि नारद -

माता! ये आप क्या कह रही हैं? मैं तो कोरोना वायरस के आतंक का समाचार सुनाने भागा-भागा यहाँ आया हूँ।

लक्ष्मी जी -

देखिये देवर्षि भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रारम्भ हो गया है।

देवर्षि नारद -

(उतावली से)

आप मुझे बताइये कैसे...?

लक्ष्मी जी -

क्या आपने सुना नहीं कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने सबको हाथ मिलाने या गले मिलने की मनाही कर दी है। सबको भारतीयों की तरह नमस्ते करने की सलाह दी है। अमेरिका में टौयलेट पेपर की आपूर्ति की कमी के कारण शौच के लिये पानी का प्रयोग करना आवश्यक हो गया है। साबुन की कमी को भारतीयों की पुरानी मिट्टी से हाथ धोने की पद्धति को अपना कर दूर किया जा रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी-ज़िंनफ़िंग ने मृतकों के अंतिम संस्कार के लिये भारतीय पद्धति के अनुसार दाह संस्कार विधि अपनाने की सलाह दी है। चिकित्सा के लिये भारतीय आयुर्वेदिक दवाइयों की मान्यता बढ़ रही है। लोगों को हल्दी, अदरक, तुलसी, गिलोय, मकोय, गुर्च, लहसुन के प्रयोग की सलाह दी जा रही है। योग गुरु रामदेव ने योग को पहले ही समस्त विश्व में महत्ता दिला दी है। यज्ञ द्वारा पर्यावरण शुद्ध करने की बात भी शीघ्र सबको समझ में आ जायेगी।

भगवान विष्णु -

देवर्षि आप कोरोना का कमाल देखते जाइये। एक-एक करके समस्त विश्व में भारतीय संस्कृति का डंका बजेगा। 

देवर्षि नारद –

जय हो प्रभु। जय हो माता। जय हो कोरोना! 

(कहते देवर्षि नारद हाथ जोड़ कर विश्व भ्रमण के लिये निकल पड़े) 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

कुँवारों का गाँव
|

[गाँव की चौपाल का दृश्य] ( एक हवनकुण्ड के…

बॉर्डर क्रासिंग: एक लफड़ा
|

सारांश:- अमेरिका ने जब इराक पर आक्रमण किया…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

स्मृति लेख

बाल साहित्य कहानी

किशोर साहित्य कहानी

रेखाचित्र

आप-बीती

कहानी

लघुकथा

प्रहसन

पुस्तक समीक्षा

यात्रा-संस्मरण

ललित निबन्ध

बाल साहित्य नाटक

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. स्मृति-मंजूषा