करती है पानी-पानी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रमा द्विवेदी3 May 2012
मर्यादाएँ न टूटें, इतना भी त्रास न दो।
कोई नारी बने अम्बिका इतना भी उपहास न दो॥
एक बार भीष्म ने नारी अधिकार का हरण किया था।
वह नारी तब बनी शिखण्डी, अरु अपना प्रतिशोध लिया था॥
इसलिए कभी ऐसा मत करना,कि कर न सको प्रायश्चित भी।
अंजाम भोगना पड़ता है, हर कुकृत्य का निश्चित ही॥
कोमलता को कमजोर समझना यह है तेरी नादानी।
आती है बाढ़ नदी में जब जग को करती है पानी-पानी॥
दुष्टों ने उत्पात मचाया, फिर भी धरती थमी रही है।
जब-जब धरती हुई प्रकंपित, सृष्टि में खलबली मची है॥
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