कठिन विदा
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
विचलित मन में कातर साँसें
कम्पित तन मे आतुर आहें ।
मौन हैं कितने भाव हृदय में
मुकुलित पथ पर पाथर राहें ।
हृदय विदीर्ण निरख घन छाये
कैसे टूटा वाद्य बजायें ।
मुख ललाम सा पुण्य धाम सा
फिर क्यूँ गुम सुम हुईं दिशायें ।
कण्ठ रूँधा है कठिन विदा है
कोई न शब्द अधर पर आयें ।
शब्द छिन रहे द्रवित नयन हैं
बोलो किस से क्या बतलायें ।
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