कौमी एकता एक उष्मा
काव्य साहित्य | कविता संजीव बख्शी3 Jun 2012
कड़ी पथरीली
ज़मीन पर
नवजात उगे हरे पौधे
ख़ुश थे अपने-अपने में
उन्हें गर्व था अपने बीज के भीतर की उष्मा पर
हम भूल गए हैं
इंसान के भीतर होती है एक उष्मा
गर्व करना चाहिए हमें उस पर
कौमी एकता सिर्फ नारा नहीं एक उष्मा है
यह नवजात उगे पौधे से कहीं कमतर ही महसूस करते हैं हम
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