कविता (प्रेरणा सिंह)
काव्य साहित्य | कविता प्रेरणा सिंह15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
तैयार हो ख़ूबसूरती से सजी,
मन के भावों में निर्झर सी बही।
कभी अकल्पनीय सपनों को,
जीवंत करती यूँ उमड़ कर बही।
शूल से चुभते आरमानों को,
अनकही बोली से निकल मैं बही।
मन का दर्पण देखे जो,
उसको तर्पण करने मैं बही।
सतयुग सा हृदय मेरा,
पुष्प अर्पण करने को मैं बही।
समझाया कितनों को, ख़ुद को,
हारी मैं स्वयं की खोज में बही।
मैं तुम्हारी अन्तर्मन वाणी,
तुम्हें सुनने को कविता बन बही।
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