ख़बर का असर
काव्य साहित्य | कविता विमला भंडारी14 Mar 2015
लगने लगता है
अब डर मुझे
अपनों से
उनकी मीठी बातों में
गंध आने लगती है
षड्यंत्रों की
सच कहूँ,
सुबह की पढ़ी ख़बर का
क्या है ये असर?
तैरने लगता है
दिमाग में एक कीड़ा
हर लेता है मन का सूकून
अपनों की नज़र का प्यार
बन हजारों चींटियाँ
रेंगने लगता है
जिस्म के
ढ़ंके-छिपे अंगो पर
दिल दहलने लगता है
नहीं रहा अब
किसी को
अपनो का भी विश्वास
हो गई ये ख़राब बात
स्त्री जात को नहीं रहा
किसी पर अब ऐतबार
प्यार/गली मोहल्ले
दोस्त/चाँद और छतें
फिल्म/ज़ुल्फ़ें, रूठने
पायल की रूनझुन
इशारों में इशारों की बातें
सब वीरान हो गई
जबसे हुई दिल्ली में.....
और दिल्ली जैसी
कई वारदातें
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