ख़ामोश हसरतें
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम1 Jul 2020
सब कुछ तो देता है ख़ुदा
अभी मेरे ग़म की आरज़ू बाक़ी है
लेकिन छीन ले मेरा सब कुछ
जिस पर किसी और का हक़ है
छीन ले मेरी भूख
उन मासूमों को दे
जो भूख से तड़पते हैं
छीन ले मेरी प्यास
उन मासूमों को दे
जो पानी को तरसते हैं
छीन ले मेरी हँसी
उन मासूमों को दे
जो दर्द में रोते हैं
छीन ले मेरी दौलत
उन मासूमों को दे
जिनकी मासूम हसरतें पूरी हों
छीन ले मेरी आँखें
जो मासूमों के हालात पर न रोती हैं
छीन ले मेरे क़दम
जो मासूमों के क़दमों को जलते हुए देखता है
छीन ले मेरा घर
उन मासूमों को दे
जो खुले आसमां तले सोते हैं
छीन ले मेरे वस्त्र
उन मासूमों को दे
जो कपड़ों में ना होते हैं
छीन ले मेरी मुस्कान
उन मासूमों को दे
जिनकी किलकारियाँ ख़ामोश हैं
छीन ले मेरी शोहरतें
जो मासूमों को गुमनाम कर देती हैं
छीन ले ख़ुदा
मेरा सब कुछ छीन ले।
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