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खेतिहर समुदायों के विस्थापन की त्रासदी : जॉन स्टाईनबैक की अमर कृति "ग्रेप्स ऑफ़ राथ"

विश्व के इतिहास में हर युग में हर समाज में कृषि की ज़मीन पर आधारित जनसमुदायों का जीवन शोषण और उत्पीड़न से भरा रहा है। भारत में ही नहीं वरन दुनिया के हर संपन्न और विपन्न देश में ग़रीब किसान वर्ग पूँजीपतियों, ज़मींदारों और सामंती कुलीन सामाजिक वर्ग द्वारा सताया जाता रहा है। आधुनिक युग में भी विकास के नाम पर किसानों को उनकी ज़मीन से बेदख़ल कर उनकी जीवन प्रदायिनी भूमि को पूँजीपति वर्ग हथियाता रहा है। ग़रीब किसान समुदाय के जीवन में बेदख़ली और तदजनित विस्थापन की समस्या कोई नई नहीं है। अमेरिका जैसे सुसंपन्न देश का इतिहास भी इसी त्रासदी का बखान करता है। एक समय पूँजीपति वर्ग द्वारा देश में कृत्रिम आर्थिक मंदी पैदा कर अर्थ व्यवस्था को तहस-नहस कर, देश की कृषि व्यवस्था को नष्ट करने के कारण कृषि पर आधारित लोगों का जन जीवन नष्टभ्रष्ट हो गया। इस कारण हज़ारों की तादाद में लोग, गाँव और क़स्बे छोड़कर सुदूर शहरों में मज़दूरी की तलाश में शहरों का रुख करने लगे। विश्व के कथा साहित्य में किसान जीवन पर आधारित उपन्यासों की विशिष्ट परंपरा रही है। इसी परंपरा की एक महत्त्वपूर्ण औपन्यासिक रचना है "ग्रेप्स ऑफ़ राथ"। 

अमेरिका के सुप्रसिद्ध लेखक जॉन स्टाईनबैक (1902-1968) द्वारा रचित "ग्रेप्स ऑफ़ राथ" ऐसे ही सामुदायिक विस्थापन की त्रासदी को चित्रित करने वाला कालजयी उपन्यास है। सन् 1939 में प्रकाशित इस उपन्यास के लिए लेखक को उस वर्ष का राष्ट्रीय पुस्तक पुरस्कार और साथ ही गौरवशाली पुलिट्ज़र पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् 1962 में जॉन स्टाईनबैक को उनके साहित्यिक योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जॉन स्टाईनबैक की ख्याति एक महान उपन्यासकार और कवि के रूप में विश्व साहित्य में दर्ज है। उनकी सारी औपन्यासिक कृतियों में "ग्रेप्स ऑफ़ राथ" का विशिष्ट स्थान है। अँग्रेज़ी भाषा में रचित इस उपन्यास ने बीसवीं सदी के तीसरे और चौथे दशक में अमेरिका के सामाजिक जीवन को झकझोरकर रख दिया था। वह अमेरिका में आर्थिक मंदी और तदजनित आर्थिक संकट का दौर था। अनावृष्टि से उत्पन्न सूखे की परिस्थितियों से कृषि व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो गई, जिससे कृषि पर आधारित किसान समुदाय अमेरिका के पूर्वी राज्यों से अपनी ज़मीन और अन्य संपत्ति को किसी तरह बेचकर या ख़रीदारों के न मिलने से छोड़कर, पेट भरने के लिए काम की तलाश में सुदूर के बड़े शहरों की ओर रुख करने लगे। 

स्टाईनबैक कृत उपन्यास "ग्रेप्स ऑफ़ राथ" उपन्यास ने अमेरिका में तहलका मचा दिया। इस उपन्यास ने अमेरिकी समाज की आर्थिक और सामाजिक विसंगतियों को विश्व के सम्मुख उद्घाटित कर दिया जिससे इस उपन्यास के प्रति अमेरिका के पूँजीपति वर्ग में नाराज़गी और असंतोष का भाव जाग उठा। यह उपन्यास अमेरिका के ओक्लोहामा राज्य से किसानों और श्रमजीवियों के भारी संख्या में रोज़गार की तलाश में निकले प्रवासियों के विस्थापन की समस्या को यथार्थावादी ढंग से प्रस्तुत करता है। आर्थिक मंदी से उपजी स्थितियों में ओक्लोहामा के ग़रीब किसानों की ज़मीनों को बड़ी कंपनियाँ, बैंक और शक्तिशाली पूँजीपति लोग, बलपूर्वक हथियाकर, अत्याचार से किसानों को खेतों से बाहर निकाल देते हैं। ऐसे किसान अपने परिजनों सहित अपना बचा-खुचा माल-असबाब गाड़ियों पर लादकर सुदूर केलिफ़ोर्निया प्रांत के लिए निकल पड़ते हैं। यह उपन्यास ऐसे ही एक "जोड" नामक परिवार के विस्थापन, उसके दुर्भाग्य तथा दैन्य की कहानी है जिसे लेखक जॉन स्टाईनबैक मार्मिक शैली में प्रस्तुत करते हैं। पहले-पहल ओक्लोहामा के किसानों के दुःख-दर्द की इस गाथा को अमेरिकी समाज स्वीकार करने को तैयार नहीं था। इस क्षेत्र के जन समुदायों की दयनीय और करुण जीवन की वास्तविकता को उद्घाटित करने के लिए ही उपन्यास पर हॉलीवुड की सुविख्यात फ़िल्म निर्माण संस्था "ट्वेंटिएथ सेंचुरी फॉक्स’ ने सन् 1940 में एक प्रभावशाली फ़िल्म बनाने का संकल्प लिया। "ग्रेप्स ऑफ़ राथ" फ़िल्म के रूप में भी उपन्यास की ही भाँति चिर प्रतिष्ठित और समादृत हुई। अपने ही देश के एक बड़े भू भाग में सूखाग्रस्त किसानों की दुर्दशा को स्वीकार करने के लिए अमेरिका के उद्योगपति और व्यापारी तैयार नहीं थे। उन्हें भय था कि इस विषय पर फ़िल्म बनाने से उनकी बदनामी होगी, इसलिए अमेरिका का उच्च वर्ग इस फ़िल्म के विरोध में खड़ा हो गया। 

ग्रेप्स ऑफ़ राथ के लेखक जॉन स्टाईनबैक अमेरिकी साहित्य के महान लेखक हैं। उन्होंने इस औपन्यासिक कृति की रचना के लिए काफी शोध किया था। उनकी डायरी में उल्लिखित प्रविष्टियों से पता चलता है कि उन्होंने स्वयं विस्थापित प्रवासियों के साथ लंबी यात्राएँ की थीं और वे कई कई दिनों तक उनके साथ तात्कालिक शिविरों में भी रहते थे। इस तरह, स्टाईनबैक विस्थापितों की पीड़ा के सहभागी बने। उनके इन्हीं अनुभवों से ही "ग्रेप्स ऑफ़ राथ’ जैसी श्रेष्ठ रचना का जन्म हुआ। इसके बाद स्टाईनबैक ने "ईस्ट ऑफ़ ईडन", "द पर्ल" जैसी अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों का सृजन किया किन्तु इन सबमें "ग्रेप्स ऑफ़ राथ" का स्थान सर्वोन्नत है। 

यह उपन्यास मूलत: ओक्लोहामा से कैलिफ़ोर्निया जाने के लिए निकल पड़े प्रवासियों की कहानी है। उपन्यास के आरंभ में जोड परिवार का तरुण युवक टॉम जोड जो एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में सात वर्षों की सज़ा काट रहा था, वह चार साल बाद पैरोल पर छूटकर ओक्लोहामा के ग्रामीण इलाके में स्थित अपने घर की राह लेता है। मार्ग में गाँव का पुराना पादरी जिम-केसी जो अपना पेशा छोड़ चुका था, उसे मिल जाता है। दोनों में दोस्ती हो जाती है और जिम-केसी भी टॉम के साथ चलने लगता है। टॉम और केसी को उनका गाँव निर्जन और उजड़ी हुई अवस्था में दिखाई देता है। वहाँ पहुँचने पर म्यूली ग्रेव्ज़ नामक एक अध-पागल गाँववासी द्वारा उन्हें पता चलता है कि गाँव पूरा का पूरा वहाँ से उठ गया है, वहाँ कुछ भी नहीं बचा। टूटे-फूटे घर, वीरान बस्ती और पास के जंगल का उजड़ा मैदान ही उन्हें दिखाई देता है। म्यूली ग्रेव्ज़ बताता है कि बड़ी मंदी के बाद अमेरिका की बड़ी कंपनियों, बैंकों और उनके दलालों ने ग्रामीण इलाक़े को तहस-नहस कर दिया था। किसानों के घर-द्वार बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त कर दिए और किसानों को मार-पीट कर भगा दिया। इसी कारण टॉम का परिवार भी वहाँ से कहीं दूर चला गया। 

टॉम को पता लगाता है कि इस समय उसका परिवार एक दूसरे गाँव में उसके चाचा के पास रहने लगा है। टॉम वहाँ पहुँचकर अपने माता-पिता, दादा-दादी, बहन और बहनोई एवं बच्चों से युक्त परिवार में शामिल हो जाता है। टॉम के पिता (पा-जोड) को भरपाई के रूप में कंपनी द्वारा बहुत मामूली सी रकम जो हासिल होती है उसी के भरोसे वे सब उस सूखाग्रस्त क्षेत्र से रोज़गार की तलाश में सुदूर बसे शहर कैलिफ़ोर्निया के लिए प्रस्थान करने की योजना बनाते हैं। अख़बारों से उन्हें कैलिफ़ोर्निया में रोज़गार की अपार संभावनाओं की सूचना मिलती है। सुनहरे भविष्य की कल्पना सँजोये जोड परिवार अपना सारा सामान, सस्ते से जर्जर ट्रक में लादकर कैलिफ़ोर्निया तक की एक हज़ार मील की कठिन यात्रा पर, नए ठिकाने की तलाश में निकल पड़ता है। हालाँकि ओक्लोहामा छोड़कर जाना टॉम जोड के लिए पैरोल के नियमों का उल्लंघन करना था फिर भी वह जोख़िम उठाने के लिए तैयार हो जाता है। टॉम का दादा (ग्रेंड पा) अपनी मिट्टी और गाँव को छोड़ने लिए तैयार नहीं होता तो उसे किसी मादक द्रव्य से बेहोश कर अपने साथ ले लेते हैं। उनके इस जत्थे में टॉम जोड की गर्भवती बहन रोज़ा-शार्न-रिवर्स भी शामिल थी। जोड परिवार का यह जर्जर वाहन (ट्रक) पश्चिमी हाईवे 66 पर क्षमता से अधिक भारी बोझ लादे धीमी रफ़्तार से दौड़ने लगता है। उस सड़क पर ऐसे ही प्रवासी समुदायों के काफ़िले की लंबी कतार दिखाई देती है।

कुछ ही दूर जाने के बाद गर्मी और लू से टॉम के बूढ़े दादा की मृत्यु हो जाती है। मार्ग में ही उन्हें दफ़ना दिया जाता है। रेगिस्तानी भू-भाग को पार करते समय पानी और भोजन के अभाव में जोड परिवार बहुत कष्ट झेलता है। रेगिस्तानी गर्मी से ग्रस्त होकर टॉम की दुबली-पतली क्षीणकाय दादी भी चल बसती है। उसे भी रास्ते में दफ़ना दिया जाता है। इस संकटग्रस्त परिवार का मूल आधार टॉम की धैर्यवान माँ (माँ जोड) है जो एक निर्भीक और जुझारू चरित्र की सुदृढ़ औरत है। वह हर संकट का सामना साहस और आत्मविश्वास के साथ करती है जो विषम स्थितियों में भी समूचे परिवार को एकजुट रखती है। 

इस अंतहीन यात्रा में जगह-जगह पर उन्हें भिन्न राज्यों की सरहदों को पार करते समय चुंगी नाके के भ्रष्ट कर्मचारी और पुलिस अत्याचारपूर्ण व्यवहार करती है। पुलिस प्रवासियों के साथ बहुत ही निर्मम व्यवहार करती है, जोड भी इस दुर्व्यवहार के शिकार होते हैं। धीरे-धीरे उनकी थोड़ी सी जमा पूँजी ख़त्म होने लगती है और वे नितांत दयनीय अवस्था में पहुँच जाते हैं। उनके सामने सैकड़ों मीलों के फ़ासले को तय करना बाक़ी था। रास्ते में एक पड़ाव पर उन्हें कैलिफ़ोर्निया से वापस लौटते हुए प्रवासी मिलते हैं जिनमें से एक वृद्ध उन्हें यह कहकर निराश कर देता है कि कैलिफ़ोर्निया में अनुकूल परिस्थियाँ नहीं हैं इसलिए उन लोगों का वहाँ जाना व्यर्थ है। 

जोड परिवार मार्ग में प्रवासियों के एक अस्थाई शिविर (ट्रांज़िट कैंप) में पहुँचता है। वह शिविर युद्ध बंदियों के यातना शिविर (कॉन्संट्रेशन कैंप) की याद दिलाता है। जोड परिवार का जर्जर ट्रक जैसे ही उस शिविर में प्रवेश करता है वहाँ मौजूद भूखे बच्चे रोटी की आस में उन्हें घेर लेते हैं। शिविर में टॉम की माँ- जोड अपनी शेष रसद में से कुछ भूखे बच्चों को भी दे देती है। वे देखते हैं कि शिविर में चारों ओर भूख और प्यास से तड़पते लोगों के परिवार अत्यंत दयनीय अवस्था में हैं। वहाँ जब वे अपराधी क़िस्म के कुछ प्रवासियों को देखते हैं तो जोड परिवार उस शिविर को छोड़कर निकट के "कीन रैंच" नामक एक दूसरे प्रवासी शिविर में पहुँचते हैं। टॉम को यहाँ उसका पुराना साथी जिम-केसी मिल जाता है। वहाँ शिविर के मालिकों के आड़ू (peach) के बगीचों में उन्हें काम मिल जाता है लेकिन मज़दूरी इतनी कम मिलती है कि उनका गुज़ारा मुश्किल हो जाता है। उस शिविर में मालिकों के अत्याचारपूर्ण रवैये से नाराज़ कामगार आंदोलन पर उतर आते हैं। टॉम भी जिम-केसी के संग प्रवासी कामगारों के आंदोलन में शामिल हो जाता है। जिम-केसी शिविर में गुप्त रूप से परवासी मज़दूरों को मालिकों के विरोध में संगठित करने लगता है इसलिए वहाँ के सुरक्षा गार्ड उसकी हत्या कर देते हैं। कैसी को बचाने के प्रयास में टॉम के हाथों एक रक्षक मारा जाता है। टॉम को भी गंभीर चोटें लगती हैं। शिविर के रक्षक टॉम को हत्या के अपराध में पकड़ने के लिए शिविर में ढूँढना शुरू करते हैं। परिस्थितियों को बिगड़ते देखकर जोड परिवार, टॉम को ट्रक में छिपाकर उस शिविर से होशियारी से बाहर निकल जाते हैं। 

यहाँ से निकलकर जोड परिवार का जत्था, ट्रक के इंजन के गरम हो जाने के कारण एक पहाड़ी पर ठहरते हैं। उन्हें पहाड़ी के दूसरी ओर दूर अँधेरे में उजली रोशनी दिखाई पड़ती है। वे धीरे-धीरे उस रोशनी की तरफ बढ़ते हैं। आखिर वे एक साफ़-सुथरे सुव्यवस्थित प्रवासियों के लिए बसाए गए एक सरकारी शिविर - "वीडपैच कैंप’ में प्रवेश करते हैं। यह प्रवासी शिविर राज्य के कृषि विभाग द्वारा बनाया गया था जिसमें पहली बार जोड परिवार आधुनिक सुविधाओं को देखकर चकित हो जाता है। इस शिविर में प्रवासियों को राज्य की पुलिस और अन्य अधिकारियों की प्रताड़ना से विशेष सुरक्षा मुहैया कराई गई थी। इस शिविर में उन्हें कपास चुनने का काम मिलता है किन्तु यहाँ भी टॉम को अपने पकड़े जाने का डर सताता है। वह इस विस्थापन और भटकन से ऊब जाता है। ऐसी स्थिति में उस परिवार की निराशा और हताशा को केवल माँ जोड ही सांत्वना दे सकती थी। उस कुनबे में माँ जोड ही वह ताक़त थी जो अपने परिजनों को मानसिक और शारीरिक रूप से टूटने से बचा सकती थी। उपन्यास के अंत में टॉम, अपने परिवार से अलग होकर कहीं दूर चला जाना चाहता है जहाँ वह जिम-केसी के आदर्श को पूरा कर सके। वह न्याय, समानता और अधिकारों की लड़ाई लड़ना चाहता है। इसके लिए वह अपने पारिवारिक स्वार्थ को त्यागकर समाज सेवा के लिए परिवार को छोड़कर जाने का निर्णय ले लेता है और उसी को व्यक्त करता है। इस तरह टॉम, अपने परिवार को छोड़कर चला जाता है। ठीक उसी समय, टॉम की गर्भवती बहन रोज़ा-शार्न एक मृत शिशु को जन्म देती है। इस घटना से परिवार दुःख के सागर में डूब जाता है। इन्हीं स्थितियों में एक बार भारी वर्षा से उनके शिविर में पानी भर जाता है। वे बाढ़ से बचने के लिए वहाँ से निकलकर उँची ज़मीन पर बने एक पुराने अनाज की कोठरी में शरण लेते हैं। उस कोठरी में वे एक नन्हें बालक और भूख-प्यास से मरते हुए उसके पिता को देखते हैं। रोज़ा-शार्न उस मरणासन्न युवक को जीवित रखने के लिए उठाकर अपने सीने से लगाकर उसे अपना दूध पिलाती है। 

टॉम जोड उन्हें छोड़कर एक बड़े लक्ष्य को पूरा करने के लिए जा चुका था। अब केवल माँ जोड ही परिवार की मुखिया थी। वह अपने कुनबे को लेकर फिर चल पड़ती है, आगे नई राह और नई मंज़िल की तलाश में। 

इस उपन्यास में मानवीय संवेदनाएँ, भीषण आर्थिक संकट, राजनीतिक व्यवस्था के क्रूर दमन, भूख और अभाव से घिरे मनुष्यों में परस्पर एक दूसरे के लिए जो आत्मीयता, प्रेम और नि:स्वार्थ भाव विद्यमान है वह प्रशंसनीय है। अपनी ज़मीन से बेदख़ल होकर भी परिवारों में एक संघर्ष जारी है। यह संघर्ष सामूहिक है जहाँ समस्त परिवार एकजुट होकर संकट का सामना करता है। माँ-जोड अपने हिस्से का अन्न अपने और अन्य के बच्चों को खिलाती है और संतुष्ट होती है। यात्रा के दौरान परिवार के सबसे बड़े तीन बुज़ुर्गों की मृत्यु हो जाती है। सभी सदस्य दु:ख से विह्वल हो जाते हैं किन्तु सुनहरे भविष्य की कल्पना में यात्रा जारी रखते हैं। टॉम और जिम-केसी की विचारधारा तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य का एक महत्त्वपूर्ण परिसंवाद है। अन्याय, अत्याचार से लड़ने के लिए असुरक्षा और अभावों के मध्य ही वे अपना रास्ता चुनते हैं। दुर्भाग्य से जिम-केसी मारा जाता है। टॉम, जिम-केसी के आदर्शों को साकार करने के लिए अपना परिवार त्याग देता है। फ़िल्म में ये दृश्य संवेदनात्मक और भावनाप्रधान हैं। टॉम की बहन, रोज़ा-शार्न द्वारा मरणासन्न व्यक्ति को स्तनपान कराने के प्रसंग को फ़िल्म में शामिल नहीं किया गया है किन्तु उपन्यास पढ़ते समय यह प्रसंग पाठकों को कल्पनातीत रोमांच से भर देता है। 

ग्रेप्स ऑफ़ राथ, उपन्यास की रचना अमेरिकी अँग्रेज़ी की लोक-भाषा शैली में की गई है। उपन्यास के सभी पात्र अमेरिका के ओक्लोहामा अँचल की देहाती अँग्रेज़ी का प्रयोग करते हैं, जो साहित्यिक और शिष्ट भाषा से भिन्न है। उपन्यास की भाषा इसे आँचलिक उपन्यास का स्वरूप प्रदान करती है। उपन्यास का शीर्षक "ग्रेप्स ऑफ़ राथ" लेखक जॉन स्टाईनबैक की पत्नी कैरोल स्टाईनबैक के द्वारा सुझाया गया था, जिसे उन्होंने जूलिया वार्ड हाओ नामक लेखिका द्वारा रचित "द बैटल हिम ऑफ़ द रिपब्लिक" नामक गीत की पंक्तियों से लिया है। इसका संदर्भ बाईबिल के एक अवतरण से है जिसमें दमन और अत्याचार से पीड़ित लोगों के लिए प्रार्थना की जाती है। ग्रेप्स ऑफ़ राथ उपन्यास ने स्टाईनबैक को अमेरिकी समाज में ग़रीब विस्थापित किसानों के मसीहा के रूप में पहचान दिलाई। इस कारण लेखक को वाम पंथी और दक्षिण पंथी दोनों दलों का क्रोध सहना पड़ा। उन पर अमेरिका की अर्थ-व्यवस्था का ग़लत प्रचार करने का आरोप लगाया गया। 

ग़ौरतलब है कि नोबेल पुरस्कार समिति ने सन् 1962 में "जॉन स्टाईनबैक को साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए चयनित करते समय "ग्रेप्स ऑफ़ राथ" को एक महान कृति घोषित किया और नोबेल पुरस्कार का श्रेय इसी उपन्यास को दिया। 

ग्रेप्स ऑफ़ राथ उपन्यास पर फ़िल्म निर्माण की योजना बनाते समय निर्देशक "जॉन फ़ोर्ड" ने निर्माताओं डेरिल ज़ेनुक और ननली जॉन्सन के साथ मिलकर उपन्यास में वर्णित ओक्लोहामा प्रांत में मंदी, सूखे और विस्थापन से पीड़ित किसानों की दुर्दशा को जानने के लिए एक जाँच समिति का गठन किया। समिति के सदस्यों ने ओक्लोहामा से कैलिफ़ोर्निया तक की यात्रा करके अपनी रिपोर्ट निर्माताओं और निर्देशक को सौंपी। इस रिपोर्ट से फ़िल्मकारों को किसानों की दुर्दशा और विस्थापित परिवारों के दु:खद जीवन का पता चला। रूसी उपन्यासों की भाँति ही ग्रेप्स ऑफ़ राथ में भी तूफ़ान, चक्रवात, वर्षा, बाढ़, सूखा और अकाल आदि प्रकृति के अनेक रूप यथावत चित्रित हुए हैं। इन्हें फ़िल्म में दृश्य रूपों में अनूठे छायांकन कौशल के साथ दर्शाया गया है। ग्रेप्स ऑफ़ राथ फ़िल्म श्वेत-श्याम प्रारूप में निर्मित यथार्थवादी फ़िल्म है। फ़िल्म कि पटकथा में कहीं-कहीं बदलाव किया गया है और कुछ अंश नहीं शामिल किए गए हैं। आश्रय हेतु बनाए जाने वाले शिविर, प्रवासियों के लिए बनाए गए तात्कालिक नियम, एक दूसरे से घुलमिल जाने वाले विभिन्न प्रान्तों के प्रवासी जनसमूह, बच्चे और बूढ़े आदि फ़िल्म में एक उदास और निराश वातावरण का बोध कराते हैं। उगते शिविर के साथ ही शिविर तोड़ दिए जाते हैं और प्रवासी जन-प्रवाह अगले आश्रय स्थल के लिए रवाना हो जाते हैं। फ़िल्म में ऐसे दृश्य दर्शकों को उद्वेलित करते हैं। उपन्यास की ही भाँति फ़िल्म की पटकथा को सशक्त रूप में निर्माता ननली जॉन्सन ने लिखा है। सुविख्यात सिनेमाटोग्राफर ग्रेग टोलेंड ने अपने कौशल से फ़िल्म में पृष्ठभूमि, परिवेश और पात्रों को कथानक के अनुकूल प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। पात्रों की संवेदनाओं को उपयुक्त पृष्ठभूमि के साथ जब छायांकित किया जाता है तो दर्शकों में दृश्यों का प्रभाव द्विगुणित हो जाता है। श्वेत-श्याम फ़िल्म में इसका प्रभाव अधिक उभर कर आता है। उपन्यास के पात्रों को जीवंत करने के लिए जिन अभिनेताओं और कलाकारों का चयन किया गया वे सभी बेजोड़ अभिनय कला एवं कौशल के लिए हॉलीवुड में अपनी ख़ास पहचान रखते थे। हेनरी फोंडा (टॉम जोड), जॉन कैराडैन (जिम-केसी), जेन डारवेल (माँ जोड), रसेल सिम्प्सन (टॉम के पिता-पा जोड) और डोरिस बौडोन (रोज़ा-शार्न) आदि ने फ़िल्म में प्रमुख भूमिकाएँ निभाई। उपन्यास और फ़िल्म में अन्य पात्रों की संख्या अधिक है जो कि प्रवासी समुदायों में स्त्री-पुरुष और बच्चे-बूढ़े, सुरक्षा कर्मी आदि की भूमिकाओं में दिखाई देते हैं। फ़िल्म में टॉम जोड ही नायक है किन्तु नायिका के रूप में उपन्यास की केंद्रीय पात्र है माँ जोड (जेन डारवेल) जो कि जोड परिवार की सशक्त संबल है। माँ जोड ही पूरे फ़िल्म को अपने आशावादी जीवन दर्शन से जीवंत बनाए रखती है। फ़िल्म का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग इसके संवाद हैं कि जो कि उपन्यास में संयोजित लोकभाषाई रूप में विद्यमान हैं। फ़िल्म में प्रयुक्त भाषा ओक्लोहामा अँचल की प्रचलित देहाती भाषा फ़िल्म को यथार्थ स्वरूप प्रदान करती है। ग्रेप्स ऑफ़ राथ में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का ऑस्कर पुरस्कार जेन डारवेल (माँ जोड) को तथा सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का ऑस्कर पुरस्कार जॉन फ़ोर्ड को प्राप्त हुआ।

वास्तव में ग्रेप्स ऑफ़ राथ उपन्यास ने विश्व के अनेक कथाकारों को किसानों के विस्थापन की समस्या पर लिखने की प्रेरणा दी है। इससे पूर्व पर्ल एस बक ने सन् 1931 में "द गुड अर्थ" उपन्यास की रचना की थी, जिसमें चीन के विस्थापित किसानों की त्रासदी का वर्णन है। इन उपन्यासों ने भारतीय कथाकारों को भी प्रेरित और प्रभावित किया जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय सिनेमा में "दो बीघा ज़मीन" और "मदर इंडिया" जैसी फ़िल्में निर्मित हुईं। आज भी ग्रेप्स ऑफ़ राथ साहित्यिक कृति और फ़िल्म दोनों ही रूपों में प्रासंगिक है। आज की पीढ़ी के लिए यह ज्ञानवर्धक और संदेशात्मक है।
 

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