खिलते हुए फूल मुरझाने लगे हैं
शायरी | ग़ज़ल मोहम्मद रहबर15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
खिलते हुए फूल मुरझाने लगे हैं
कुर्सी पर बैठकर वो अफ़राने लगे हैं
सोचा था कि सूरत कुछ और होगी
और आप हमसे नज़र चुराने लगे हैं
जो उठा रहा है हक़ की आवाज़
आप उसकी ज़बान खिंचवाने लगे हैं
इन नामानिगारो को ज़रा देखो तो
अपने आक़ा के गीत गाने लगे हैं
न करे इनसे कोई काम का सवाल
ये मेरे शहर में धुँआ फूकवाने लगे हैं
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