खो गयी
काव्य साहित्य | कविता हेमेन्द्र जर्मा1 Jun 2007
खो गयी, वो ज़िन्दगी
इस शहर में, इस तरह
कि जैसे
रात के आईने में
धूमिल मेरी परछायी
ख़ामोश हैं तस्वीरें
तन्हा है हर लम्हा
कुछ इस तरह से खोयी
ज़िन्दगी मेरी कि जैसे
धूप के किनारे से
भटकता हुआ कोई सहरा
सो गया हो रात के आँचल में
चाँद की तरह -
या
किसी सुन्दर ख़्वाब की
मीठी याद की तरह
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