ख़ुशबुओं की तरह महकते गए
शायरी | ग़ज़ल चाँद शुक्ला 'हदियाबादी'1 Mar 2019
ख़ुशबुओं की तरह महकते गए
तेरी जुल्फ़ों के साए डसते गए
जो न होना था वोह हुआ यारो
भीड़ थी रास्ते बदलते गए
न मिला तू न तेरे घर का पता
हम तेरी दीद को तरसते गए
ज़िंदगी को जिया है घुट घुट कर
दिल में अरमान थे मचलते गए
कैसा बचपन था बिन खिलौनों के
चुटकियों से ही हम बहलते गए
मेरे सपने अजीब सपने थे
मौसमों के तरह बदलते गए
जब छुपा बादलों की ओट में "चाँद"
ग़मज़दा थे सितारे ढलते गए
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- ख़ुशबुओं की तरह महकते गए
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