ख़ुशियों का इंतज़ाम
कथा साहित्य | लघुकथा दीप्ती देशपांडे गुप्ता15 Mar 2021 (अंक: 177, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
एक विवाह समारोह में लता की दोनों बहुएँ, खाने की थाली लता के लिए लेकर आईं। लता को उन्होंने डॉक्टर के चेक-उप की याद दिलाई और वे दोनों लता की सहेली उषा को प्रणाम कर चली गईं। उषा हैरानी के साथ देखते हुए लता से बोली, "ये मैं क्या देख रही हूँ लता? क्या ये वो ही बहुएँ हैं जिनकी बुराइयाँ तुम करती नहीं थकती थीं और जो तुम्हारी बुराइयाँ करती नहीं थकती थीं? एक साल में इतना बड़ा परिवर्तन कैसे हो गया मुझे भी बताओ। मैं तो अपनी बहू से तंग आ चुकी हूँ।"
लता ने कहा, "अब हमने अपनी खुशियों का इंतज़ाम कर लिया है, और हम सभी बहुत ख़ुश हैं।
"मैंने बड़ी ख़ुशी से दोनों बेटों की शादी एक साथ की, बहुत पढ़ी-लिखी और नौकरी वाली बहुएँ ख़ुद पसंद कर के लायी। लेकिन शादी के बाद सब कुछ जैसे बदल गया। परिवार बढ़ा और ख़ुशियाँ कम हो गईं। बहुओं से मेरी बिलकुल भी नहीं बनी। मैंने बहुत ज़्यादा उम्मीदें बढ़ा रखी थीं कि बहुओं को नौकरी के अलावा घर के सारे काम वैसे ही करने चाहिएँ जैसे कि मैं करती आयी हूँ; और वो कभी ना हो सका। उसके बाद उन दोनों की भी आपस में कामों की ज़िम्मेदारियों को ले कर छोटी-मोटी नोकझोंक हो जाती। दोनों बेटे जिनमें हमेशा से इतना प्यार रहा है– बिचारे वो भी अपनी बीवियों के मारे थोड़े परेशां रहने लगे।
"मैंने बहुत सोचा और मन पक्का कर के एक निर्णय लिया की एक घर के तीन घर करूँगी। दोनों बेटों को घर से थोड़ी-थोड़ी दूरी पर दो अलग घर बनवा दिए। अपने लिए हमने सारे कामों के लिए काम वाली रखवा ली। आने-जाने के लिए एक ड्राइवर रखवा दिया, और दोनों बेटों ने पूरा ख़र्चा आपस में आधा-आधा बाँट लिया। उसके बाद एक नियम बनाया की हर १५ दिन में सब लोग हमारे साथ २ दिन रहेंगे और साल के सारे त्यौहार भी हमारे साथ यहीं घर पर रह कर मनाएँगे। और सच कहती हूँ पिछले कुछ समय से घर में ख़ुशियाँ हैं। बहुएँ बड़े आदर और प्यार से हम दोनों ध्यान रख रही हैं।
"आख़िर हर पति-पत्नी की इच्छा होती है कि वो अपना घर अपने मर्ज़ी से चलाएँ, सजाएँ और अपने बच्चों को बड़ा करें। हमें कोई अधिकार नहीं कि हम उनकी इच्छाओं को सिर्फ़ इसीलिए रौंद दें क्योंकि इस घर को हम अपने तरीक़ों से चलाते आये हैं। हमें अपने परिवार की पतंग की उड़ान को ऊँचा बढ़ने के लिए डोर में ढील देना भी ज़रूरी है और उसे पकड़ के रखना भी ज़रूरी है। अगर जो डोर कटी, तो, ना तो वो पतंग उड़ेगी ना तो वो हाथों से जुड़ी रहेगी। और ये है हमारी ख़ुशियों का इंतज़ाम।"
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होम सुवेदी 2021/03/16 08:55 PM
गृहस्थी सूत्रके रुपमे यह कथा दिखा जाएगा । आपको बहुत बहुत बधाई हो श्र