किस क़दर है तुमने ठुकराया मुझे
शायरी | ग़ज़ल आहद खान8 May 2016
किस क़दर है तुमने ठुकराया मुझे,
करम ए ख़ुदा ने भी झुठलाया मुझे।
ढूँढता रहता हूँ अपनी ही परछाई,
हर सिम्त रौशनी ने बिखराया मुझे।
बेख़ता होकर बना हूँ नज़रों का मरकज़,
अदावत भरी नज़रों ने मुरझाया मुझे।
मै ठहरा हूँ बनकर इंसान क्या परवाह,
बेसाख़्ता चले जाते लोगों ने झुठलाया मुझे।
कितनी तकलीफ़ें है जब फ़ानी है ये जहां,
ग़र्क़ से उभरती साँसों ने सुलझाया मुझे।
क्यूँ है रातें इतनी बेचैन जो तू भी नहीं,
तेरे साथ जीने के अरमानों ने रुलाया मुझे।
इन मोहलातों से पूछो "आहद" इंतज़ार क्या है,
दफ़्न हुआ तो बंद क़ब्र ने बुझाया मुझे।
मरकज़=केन्द्र; अदावत=शत्रुता; बेसाख़्ता=अचानक; फ़ानी=नश्वर
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