किस तरह ख़ाना ख़राबां फिर रहें हैं हम जनाब
शायरी | ग़ज़ल चाँद शुक्ला 'हदियाबादी'1 Mar 2019
किस तरह ख़ाना ख़राबां फिर रहें हैं हम जनाब
नींद में भी सो ना पाएँ देखते रहते हैं ख़ाब
वोह हसीं हैं हमने माना और है वोह पुर शबाब
हम भी उनसे कम नहीं दिल के हैं यारो नवाब
दिल नहीं है अपने बस में ना है बस में दिमाग
दर्द हमको दे दिये हैं इस जहां ने बे हिसाब
तुझको फ़ुरसत से बनाया है ख़ुदा ने ख़ुश जमाल
फूल सा चेहरा तेरा और मस्त आँखें लाजवाब
लोग कहते हैं शराबी यह ग़लत इल्ज़ाम है
जिस क़द्र आँसू पियें हैं उसके कम पी है शराब
तू अंधेरे में छुपी है ऐ मेरी जाने ग़ज़ल
“चाँद” हूँ आख़िर तुझे मैं ही करूँगा बे निक़ाब
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