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किसे कहूँ मैं युग-परिवर्तन

 जीवन का अस्तित्व सुरक्षित है जिनके ही कारण
जिनके सत्प्रयास से होता सामाजिक आवर्तन
वही उपेक्षित हैं समाज में, क्या यह न्यायोचित है
क्या उत्थान यही है? किसे कहूँ मैं युग परिवर्तन?

श्रुति, स्मृति करते हैं जिनका नमन वही सर्वज्ञा
सुर, नर, मुनि सबने है दिया जिन्हें सुनीति पद प्रज्ञा
कार्य सृष्टि संचालन का जिसने सहर्ष स्वीकार किया है
आज उन्हें क्या मिला सिवाय उपेक्षा अधिकृत वर्जन

क्या पुरुष वर्ग का दंभ और अहं साथ नहीं छोड़ेगा
क्या वह अपने पौरुष बल का अभिमान नहीं तोड़ेगा
उसका अन्तः सुविचारित हो क्या यह बन चुका असंभव
क्या इस विधि हो सकता समाज का प्रगति सहित संवर्धन

सृजन कार्य की प्रगति हेतु जिनका प्रयास है श्लाघ्य
है उचित सभी के अर्थ यही समझें उनको आराध्य
समता का दें अधिकार प्रगति पथ यदि प्रशस्त करना है
गर यह न कर सके तो किस भाँति करेंगे उनका अर्चन

अनाचार के नाश हेतु जो पति संग हुई वनवासी
उस सिय सम स्त्री को न समझ अपने चरणों की दासी
जिसने उत्प्रेरित किया पांडवों को स्वराज्य विजयार्थ
वह त्याग द्रौपदी का है अतुलनीय और संतर्पण

जो मानव धन की प्राप्ति हेतु पूजित करता लक्ष्मी को
वह क्यों अपमानित करता है देवी सम गृहलक्ष्मी को
है बिन सरस्वती कृपा असंभव जीवन का निर्वाह
और उमारहित है अर्धप्रभावी शिव का तांडव-नर्तन

अतः करो हे देव ! सदा ही नारी का सम्मान
हर नारी प्रतिमूर्ति है माँ की रखो प्रथम यह ध्यान
करो नहीं संज्ञायित उनको ‘अबला’ इति शब्दों से
दो स्वतन्त्रता फिर देखो उनका आत्म-अवलंबन

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