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किसी को जहाँ में किसी ने छला है

122 122 122 122
अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
 
किसी को जहाँ में किसी ने छला है
मुझे  तो  मेरी  बेबसी  ने  छला  है
 
रही चार दिन तक जुदा हो गई फिर
मुझे उम्र भर हर  खुशी ने छला है
 
बढ़ी तिश्नगी जिस क़दर पी किसी ने
उसे क्या पता मय कशी ने छला है
 
अंधेरों से डर के भी क्या कीजिएगा
पतंगे को  जब  रोशनी  ने छला है
 
ये दुश्मन हैं बेहतर कि खुलकर खड़े हैं
छला है तो  बस  दोस्ती  ने छला है
 
नहीं कोई शिकवा किसी से जहाँ में
मुझे ख़ुद  मेरी  ज़िंदगी  ने  छला है
 
छलावा है दुनिया 'निज़ाम' इससे बचना
यहाँ हर किसी को किसी ने छला है

– निज़ाम-फतेहपुरी

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