कोलाहल (वैद्यनाथ उपाध्याय)
काव्य साहित्य | कविता वैद्यनाथ उपाध्याय1 Oct 2020
रहस्य के किसी महाद्वीप पर
मैंने शब्दों का नीड़ बनाया है
वहाँ सपनों के
पहाड़ हैं
नदियाँ हैं
चिड़ियों का एक संसार है।
वहाँ सबकुछ है
प्रकृति खुले में निर्वस्त्र होकर
नाचती है।
मैं वहाँ
सदियाँ गुज़ारना चाहता हूँ।
पर
यह हरामी मन है
मेरे पास
जो गन्दी मैली बातों से
मैला कुचैला कर
बरामदे को
बेचैन किए रहता है।
मैं बहुत दुखी हूँ
इस मन से
कभी अकेला
नहीं रह पाता हूँ
इस के कोलाहल से!
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