क्षेत्रियता की सीमा
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह1 Jan 2021
क्षेत्रियता की सीमा
गाँव ज़िले राज्य
यहाँ तक कि
अब देश भी नहीं रही
मानव
विश्वमानव बनने जा रहा है
क़बीले समुदाय छोटे राज्य
इतिहास बन चुके हैं
देश महादेश की सीमाएँ
अब शत्रु नहीं
मित्र बन रही हैं
विश्व संस्कृति
विश्व राष्ट्र
विश्व क़ानून
विश्व व्यवस्था की
शुरुआत हो चुकी है
एक देश की ख़ुशी
दूसरे देशों को
हँसी दे सकती है
तीसरे देश की तबाही
सारी दुनिया को
लपेटे में ले सकती है
विश्व एक आँगन बन रहा है
विश्व मानवों में ज़्यादा
अलग-अलग अब उद्देश्य भी नहीं रहे
क्षेत्रियता की सीमा
अब गाँव ज़िले राज्य
यहाँ तक कि देश-विदेश भी नहीं रही
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