कुछ नये मुक्तक
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक सुधेश8 Dec 2014
१.
दर्द अब है मेरी ज़िन्दगी का भाग
दिल में धधकती रही कैसी आग
दिन तो गया कुछ सोचते लिखते हुए
आज मेरी रात गुज़रेगी बस जाग।
२.
दर्द ही तो बन गया है गीत
आह ध्वनि से ध्वनित है संगीत
ज़िन्दगी में हारता ही रहा
बाद मरने के मिली क्या जीत।
३.
समय चलता रहा अपनी चाल से
कहाँ हम सन्तुष्ट अपने हाल से
यदि कुछ अच्छे काम कर जाएँ
तो पराजित नहीं होंगे काल से।
४.
हमारा काम है बस तजारत
हमारी कामना है वज़ारत
हमारे हाथ तो गिरवी रखे
हमारा शौक़ सब की शिकायत।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं