अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

कुँवारों का गाँव

[गाँव की चौपाल का दृश्य]
( एक हवनकुण्ड के पास एक पण्डित तथा विभिन्न आयु के कई नौजवान बैठे हैं। पण्डित मंत्रोच्चार द्वारा भगवान शिव का आह्वान कर रहा है तथा बाक़ी लोग उसका अनुसरण कर रहे हैं। सबकी आँखें बंद हैं।)

पण्डित : ओउम नमः शिवाय।
बाक़ी लोग : ओउम नमः शिवाय।
सब : जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावित स्थले
गलेऽ वलम्ब्य लम्बितां भुजंग तुंग मालिकाम्।
डमड् डमड डमन्निनाद वड्डमर्वयं
चकार चण्ड ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।
ओउम नमः शिवाय। ओउम नमः शिवाय।...........

 

(भगवान शिव प्रकट होते है।)
शिव : आँखें खोलो भक्तो, हम आपकी भक्ति से अति-प्रसन्न हुए।

 

(सब लोग आँखें खोलकर शिवजी को देखते हैं और दण्डवत प्रणाम करते हैं।)
सब : प्रणाम महादेव।
शिव : ख़ुश रहो! ख़ुश रहो! अब बताओ, मुझे क्यों याद किया? कौन अमर होना चाहता है?
पण्डित : अमर होकर क्या करेंगे प्रभु? यहाँ तो वैसे ही ज़िन्दगी बोझ लगती है।
शिव : (अर्न्तयामी की तरह) हम्म्म्म.... तो फिर तीनों लोकों का राज चाहिये, किन्तु उसके लिए आजकल चुनाव होते हैं । मैं उसमें कुछ नहीं कर सकता। उसके लिये तो कोई गब्बर सिंह ढूँढो जो पोलिंग बूथ पर कब्ज़ा कर सके या कोई हैकर ढूँढो जो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को हैक कर सके...।
पण्डित : ना ना ना...प्रभु, हमें ऐसी कोई चीज़ नहीं चाहिये (नौजवानों की तरफ़ देखते हुए) हमारे तो बच्चों को समस्या हो रही है।
शिव : (चौंककर) समस्या! वो भी बच्चों को? (पण्डित को डांटते हुए) इसका मतलब आप लोग बच्चों का ध्यान नहीं रखते! हमारे गणेश को तो कभी कोई समस्या नहीं हुई। (यादों में खोकर ख़ुश होते हुए) वह पूरे दिन मेरे कंधे पर चढ़ा रहता था और जब मैं थक जाता था, तब वह पार्वती जी की गोद में खेलता रहता था, पर हाँ, उसको भूख थोड़ी जल्दी लग जाती थी।
पण्डित : (डरते-डरते) प्रभु, ये थोड़ी बड़े बच्चों की समस्या है।
शिव : (उपदेशक की तरह) भई, बड़े बच्चों को तुम पढ़ा-लिखा दो तो वो अपनी मेहनत से सारी चीज़ें हासिल कर लेंगे।
पण्डित : पर भगवन, इनको जो चीज़ चाहिये वो मिलती ही नहीं है।
शिव : मिलती ही नहीं? ऐसी क्या चीज़ है? मुझे बताओ मैं अभी मँगवा देता हूँ।

 

(सारे नौजवान "पहले मुझे"-"नहीं, पहले मै लूँगा" कहते हुए आपस में लड़ने लग जाते हैं। शिवजी आश्चर्यचकित देखते हैं फिर झल्लाकर ज़ोर से डाँटते हैं।)
शिव : (डाँटते हुए) चुप! लड़ क्यों रहे हो? तुम लोगों को जो कुछ भी चाहिये, सब को बाँटकर दे दूँगा।
सारे नौजवान : (एक साथ) बाँट कर नहीं चाहिये, सबको अलग-अलग चाहिये।

 

(पण्डित जी बीच में बोलते हैं।)
पण्डित : तो फिर सब अलग-अलग बतो दो, पर लड़ो मत।

 

(यह कह कर पण्डित जी, शिवजी के पास जाकर बातें करने लग जाते हैं।
 नौजवान फिर से "पहले मैं बताऊँगा"-"पहले मैं बताऊँगा" की लड़ाई शुरू कर देते हैं। शिवजी पण्डित को कुछ बताते हैं जो सुनायी नहीं देता है।
पण्डित जी का ध्यान लड़कों की तरफ़ जाता है।)
पण्डित : अरे मूर्खो लड़ो मत, जब शिवजी भगवान कह रहे हैं तो सब एक-एक करके बता दो। नंबर तो सबका आ ही जायेगा।

(पण्डित जी फिर से शिवजी से बातें करने लग जाते हैं।)

नत्थू : पर पण्डित दादा, सबसे पहले बड़े का ही नम्बर आना चाहिये ना!
धोल्या : नहीं दादा, शुरूआत छोटे से होनी चाहिये। बड़ों की तो घणी गयी, थोड़ी बची है।  (नत्थू की तरफ़ इशारा करते हुए) वैसे भी बड़ों को बुढ़ापा आ चुका है।
नत्थू : धोल्या, तूं बहुत ज्यादा बोल गया। बड़ों को बुढापा आ चुका है या नहीं, पर ऐसी बातें करके तूने जरूर साबित कर दिया कि तेरी बुद्धि अभी तक बच्चों जैसी है। 
धोल्या : (यह सुनकर घबराते हुए) तेरे कहने से बच्चा थोड़े ही हो जाऊँगा, 21 साल का गबरू जवान हूँ।
नत्थू : होगा तू जवान, पर यहाँ शुरूआत बड़े से ही होगी।
धोल्या : ऐसे कैसे होगी, दादागिरी है क्या?
नत्थू : हाँ है।

(नत्थू की बात सुनकर धोल्या नत्थू का गला पकड़ लेता है। बात बढ़ती देख शिवजी और पण्डित जी का ध्यान इस ओर जाता है।)

पण्डित : अरे, तुम्हारी अभी तक लड़ाई खत्म नहीं हुई! शिवजी भगवान कब से तुम लोगों का इंतजार कर रहे हैं। इनको और भी कई काम हैं। अभी ये बता रहे थे कि इनको एक भाँग गोष्ठी में जाना है।
सारे नौजवान : (एक साथ) तो आप ही बता दो ना कि शुरूआत बड़े से होनी चाहिये या छोटे से?
शिव : (झल्लाते हुए) पण्डित जी क्या बताऐंगे? मैं बताता हूँ, किसी के पास एक रूपये का सिक्का है क्या?
नत्थू : (जेब से सिक्का निकालते हुए) हाँ है प्रभु (सिक्का दिखाता है)
शिवजी : (सिक्का देखकर खुशी से) ला मुझे दे दे।
नत्थू : (सिक्का वापस छुपाने की कोशिश करते हुए) आप क्या करोगे?
शिव : तुम्हारा पहले बाद का फैसला करूँगा।
धोल्या : अच्छा-अच्छा टॉस करोगे?
शिव : हाँ, टॉस करेंगे। (नत्थू सिक्का देता है।)
शिव : (सिक्का टॉस करने की मुद्रा में हाथ पर रखकर) हाँ भई नत्थू, बता तू क्या लेगा? हैड या टेल।
 नत्थू : हैड....
धोल्या : नहीं, हैड मैं लूँगा।
नत्थू : (डरते हुए) ठीक है तो मैं टेल ले लूँगा।

(शिवजी सिक्का उछालते हैं। नत्थू टॉस जीत जाता है। शिवजी सिक्के को उठाकर कमंडल में डाल लेते हैं। नत्थू फटी ऑखों से ये सब देखता है।)

शिव : वाह भई नत्थू, तू जीत गया। बता, तुझे क्या चाहिये?
नत्थू : (कमण्डल की तरफ़ देखते हुए) महाराज वो सिक्का।
शिव : बस! सिर्फ एक सिक्का ही चाहिये?
नत्थू : नहीं प्रभु, वो सिक्का मेरा ही है। आपने गलती से कमंडल में डाल लिया।
शिव : (बात को सँभालते हुए) ओ... हाँ हाँ। दरअसल नत्थू बात ये है कि दुनिया जहान की इतनी टेंशन रहती है कि छोटी-मोटी बातों का ध्यान ही नहीं रहता। (सिक्का निकालकर नत्थू को देते हैं।) ये ले अपना सिक्का। अब बता, क्या चाहिये?
नत्थू : (खुशी और उत्साह के साथ) प्रभु मेरा ब्याह करवा दो।
शिव : (हँसते हुए) बस! इतनी सी बात के लिये मेरी जरूरत पड़ गयी?
नत्थू : इतनी सी बात नहीं है प्रभु। मेरा ब्याह हो नहीं रहा है।
शिव : (हँसते हुए) अरे तो टाइम से करवाना चाहिए था ना, अब इस उमर में तो दिक्कत आयेगी ही।
नत्थू : टाइम से? भगवन, पिछले 15 सालों से पूरा ज़ोर लगा रखा है पर कोई छोरी ही नहीं मिल रही।
शिव : (सोचते हुए) अच्छा! तेरा केस तो फिर ज्यादा बिगड़ गया। तेरा खाता चैक करना पड़ेगा। तू इधर बैठ थोड़ी देर। (नत्थू को एक तरफ़ बैठाते हैं ) हाँ भई धोल्या, अब तू बोल तुझे क्या चाहिये।
पण्डित : इसको भी ब्याह करवाना है।
शिव : इसको भी ब्याह करवाना है? क्यों, इसको भी छोरी नहीं मिल रही क्या?
पण्डित : सिर्फ इसको ही नहीं प्रभु इन सबको ही ब्याह करवाना है और सबको ही छोरी नहीं मिल रही।
शिव : (स्थिति की भयावहता को देखते हुए पैंतरा बदल लेते हैं।) अच्छा देखो यारो, यूँ तो तुम सब लोगों की अपनी-अपनी इच्छा है, पर तुम्हें समझाना मेरा फर्ज है, और मेरी राय ये है कि ब्याह करवाने में कोई फायदा नहीं है बिना मतलब दुखी हो जाओगे।
धोल्या : (बच्चों की तरह रूठते हुए) जब हमारी बारी आयी है तो कोई फायदा नहीं ब्याह करवाने में! फिर आपने क्यों करवाया था?
शिव : (उदास होकर) मैं कौन सा सुखी हूँ यार। जब तक ब्याह नहीं करवाया था तब तक ही ठीक था (यादों में खो जाता है) आराम से कैलाश पर आ हा हा हा हा.....।
सब : आ हा हा हा.... क्या प्रभु?
शिव : (ख़ुश होकर) बता दूँ!
सब : हाँ प्रभु ।
शिव : सच में बता दूँ?
सब : हाँ प्रभु बता ही दीजिये।
शिव : (गाते हुए)
अरे.... बम-बम भोळे,
भाँग के गोळे,
पीते थे दिन-रात,
मौज में रहते थे..... (नाचते हुए) बम-बम भोळे, भाँग के गोळे..... (रोने लगता है)
सब : क्या हुआ प्रभु?
शिव : अरे यार, अब मौका नहीं मिलता।
सब : क्यों प्रभु? अब क्या हो गया।
शिव : अब भैया, पार्वती जी घोटने नहीं देती। उपर से जब मन करता है, पृथ्वी पर चलने की जिद्द करने लगती है, कहती हैं - "महाराज इसका ये दुख दूर करो, उसका वो दुख दूर करो"। अब तू बता यार, मैं किस-किस के दुख दूर करूँ। ये तो पूरी दुनिया ही दुखी है।
नत्थू : (उलाहना देते हुए) प्रभु ये तो आपका फर्ज है, माँ पार्वती सच ही तो कहती हैं।
शिव : सच तो कहती हैं, पर इसमें रूठने की क्या बात है? अब तीन दिन पहले की ही बात है, बोली - "महाराज धरती पर बड़ी समस्या हो रही है"। मैने थोड़ी भाँग लगा रखी थी, उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तो वो रूठ कर अकेली ही धरती पर आ गयी। अब मैं घूम रहा हूँ उन्हें ढूँढता।
पण्डित :  (भय मिश्रित आश्चर्य से) माँ पार्वती सच में अकेली पृथ्वी पर घूम रही हैं क्या?
शिव : हाँ यार, हमारी चिंता ही कौन करता है?
पण्डित : चिंता आपकी कैसी प्रभु, चिंता तो आपको माँ पार्वती की करनी चाहिये। पृथ्वी पर तो अकेले आदमी का घूमना खतरे से खाली नहीं है औरतों की तो बात ही अलग है।
शिव : (आश्चर्य से) क्यों? ऐसा क्या हो गया पृथ्वी पर?
पण्डित : (डरावनी बात बताने के अन्दाज में) प्रभु जगह-जगह हत्या, लूट, डकैती और ......... और पता नहीं क्या-क्या हो रहा है। लगता है आप अखबार नहीं पढ़ते। अरे नत्थू, वो अखबार ले कर आ ज़रा।
नत्थू : (अखबार देते हुए) लीजिये प्रभु।
शिव : (अखबार पढ़ते हुए चिंतित होते हैं तथा फुर्ती से कमंडल में से मोबाइल फोन निकालकर एक नम्बर डायल करते हैं) हाँ, नारद जी! आप एक काम करो, पृथ्वी पर पार्वती जी से बात करो, और पता करो कि वो किस जगह पर है, फिर जल्दी से उनके पास पहुँचो.......... (गुस्से से) अरे वो मेरा फोन उठाती तो मैं आपसे क्यों कहता ........ हाँ, वो मुझसे रूठी हुई हैं। अब मैं एक मामले को सुलझा रहा हूँ, आप जल्दी से उनके पास पहुँचो। (फोन काटकर नत्थू व धोल्या से) अब तो कुछ समझ में आया होगा या अब भी ब्याह करवाना है?
धोल्या : हाँ प्रभु, ब्याह तो करवाना ही है।
नत्थू : हाँ प्रभु, इसमें तो कोई शक नहीं है, ब्याह तो करवाना ही है।
शिव : ठीक है तो भई, मैं तुम सबके खाते चैक करता हूँ और देखता हूँ कि किस-किस लड़की के साथ तुम्हारा नाम जुड़ेगा (लेपटॉप निकालते हैं) अरे नत्थू तुम्हारे पिताजी का नाम क्या है?
नत्थू : अमराराम।
शिव : (लेपटॉप में देखते हुए) यार, तेरे खाते में तो किसी लड़की का नाम ही नहीं है। तेरा मामला फुर्सत से निपटायेंगे। हाँ भई धोल्या, तू बता तेरे पिताजी का क्या नाम है?
धोल्या : फतेह सिंह।
शिव : (फिर से लैपटॉप में देखते हुए) खाता तेरा भी खाली है।
पण्डित : प्रभु, मुझे लगता है कि इन छोरों का सबका ही खाता खाली मिलेगा।
शिवजी : (चिढ़ते हुए) ऐसे कैसे खाली मिलेगा? मैं अभी चित्रगुप्त जी से बात करता हूँ (मोबाइल से एक नम्बर डॉयल करते हैं।) हाँ चित्रगुप्त जी, पृथ्वी पर भारत में कुँवारापुर गाँव में पहुँचों, जल्दी। (फोन रखकर पण्डित और गॉव वालों से) तुम लोग बेवजह चिंता कर रहे हो। कम्प्यूटर में नाम चढाने में कोई गड़बड़ हो गयी होगी । अभी चित्रगुप्त जी आ जायेंगे तो सारे काम सही हो जायेंगी।
(तभी चित्रगुप्त जी का प्रवेश होता है जिनके हाथ में बहीखाता या लेपटॉप है।)
चित्रगुप्त : प्रणाम महादेव।
शिव : प्रणाम चित्रगुप्त जी। इस गाँव के सारे लड़कों के खातों में लड़कियों के नाम नहीं चढ़े हुए। ये गड़बड़ कैसे हुई?
चित्रगुप्त : महादेव, इन लड़कों की फाइलें जब बनायी थी तब उनमें लड़कियों के नाम भी थे, पर उन लड़कियों के जन्म से पहले ही उनके नाम यमराज जी की फाइलों में आ गये तो लड़कों की फाइलों से लड़कियों के नाम हटाने पड़े।
शिव : (नाराज़गी के साथ) यार, जन्म से पहले यमराज की फाइलों में नाम आ गये? ये यमराज कहीं पागल तो नहीं हो गया?
नत्थू : (उतावला होकर) तो प्रभु उनका इलाज करवाओ ना, जल्दी।
चित्रगुप्त : ना प्रभु, यमराज जी पागल नहीं हुए । वो भी इन सबसे परेशान हैं। ये सारी गड़बड़ तो धरती के आदमी-औरतों ने कर रखी है।
शिव : वो कैसे?
चित्रगुप्त : वो ऐसे कि ये धरती के लोग कन्या को जन्म से पहले, उसकी माँ के पेट में ही मार देते हैं और कई बार तो जन्म लेने के बाद भी मार देते हैं।
पण्डित : चित्रगुप्त जी ऐसी घटना तो एक-आध ही होती है, उससे इतनी सारी लड़कियाँ थोड़े ही कम हो जाती हैं।
चित्रगुप्त : घटनाऐं एक-आध नहीं पण्डित जी, बहुत ज्यादा हो रही हैं और लड़कियाँ इतनी कम हो चुकी हैं कि कई जगह तो एक हजार लड़कों के मुक़ाबले 700 लड़कियाँ ही बची हैं।
शिव : चित्रगुप्त जी, यह तो बहुत चिन्ताजनक बात है।
चित्रगुप्त : हाँ भगवन, बात तो चिंताजनक है पर हमें कैसी चिंता? चिंताजनक उन लड़कों के लिये है जिनकी शादी नहीं हो पा रही है।
शिव : अरे! लड़कों के लिए नहीं, हमारे लिए चिंता की बात है।
चित्रगुप्त : क्यों प्रभु?
शिव : अगर यूँ ही लड़कियाँ कम होती रहेंगी तो लड़कियाँ बचेंगी ही नहीं।
चित्रगुप्त : ना प्रभु, यह नहीं हो सकता।
शिव : क्यों?
चित्रगुप्त : ये जो धरती के लोग हैं, इन्होंने बहुत ज़ोरदार सिस्टम बना रखा है। जिस भी जीव की संख्या कम होने लगती है, उसे ये चिड़ियाघर में सुरक्षित रख देते हैं।
शिव : पर चित्रगुप्त जी, चिड़ियाघर का जीव तो सिर्फ देखने के लिए ही काम आ सकता है!
चित्रगुप्त : तो आपको और क्या काम करवाना है?
 शिव : नारी दुनिया को चलाने वाली होती है चित्रगुप्त जी।
चित्रगुप्त : नारी! दुनिया चलाने वाली? लेकिन प्रभु, दुनिया चलाने वाले तो आप हैं।
शिव : मैं तो सिर्फ बहाना हूँ । दुनिया नर और नारी ही चलाते हैं और नारी का तो सबसे ज्यादा योगदान है।
धोल्या : सबसे ज्यादा नारी का योगदान?
नत्थू : हाँ प्रभु, यह बात मेरे भी समझ में नही आयी?
शिवः : अरे भई.... नारी जननी है, उसी से तो वंश आगे बढ़ता है।
धोल्या : (बेचैन होते हुए) प्रभु.... करो ना नारी की व्यवस्था, वरना मेरा भी वंश रुक जायेगा।
पण्डित : तेरा क्या धोल्या, लड़कियों के बिना तो पूरे गाँव का ही वंश रुक जायेगा।
शिव : पण्डित जी, गाँव का ही नहीं, पूरी दुनिया का वंश रुक जायेगा।
नत्थू : (आँखों में आँसू भरकर शिवजी के पाँव पकड़ लेता है) प्रभु, मेरा वंश बचा लो।
शिव : रुक रे नत्थू, कुछ सोचने दे यार। चित्रगुप्त जी, आप उन लोगों की लिस्ट बनाओ जिस-जिस ने कन्या की हत्या करी है या हत्या में मदद करी है।
चित्रगुप्त : लिस्ट तो तैयार है प्रभु।
शिव : किस-किस के नाम हैं लिस्ट में? सबको यहाँ बुलाओ।
चित्रगुप्त : बुलाने की क्या जरूरत है, ऐसे आदमी तो यहाँ बहुत सारे बैठे हैं।
शिवजी : एक-आध के नाम बताओ।
चित्रगुप्त : (दर्शकों की तरफ़ देखकर) एक तो ये वर्मा जी, एक वो ठाकुर साहब, एक ये चौधरी जी और .......... एक ये अपने पण्डित जी।

(पण्डित जी चुपके से जाने के लिए रास्ता देखते हैं।)

शिव : क्यों पण्डित जी ये बात सही है क्या?
पण्डित : वो-वो .......... प्रभु, बात ये है कि...........वो.... वो..
शिव : क्या बात है, बोलो तो सही।
पण्डित : बात कुछ भी नहीं है प्रभु, गलती हो गयी, माफ कर दीजिए।
शिव : पहले ये बताओ कि गलती हो क्यों गयी?
पण्डित : भगवन, उस समय दहेज के कारण लड़कियों की शादी होना मुश्किल हो चुकी थी। मैने सोचा कि मेरी बेटी की शादी भी दहेज के बिना मुश्किल हो जायेगी और मुझे लोगों की तरह-तरह की बातें सुननी पड़ेगी। इसलिये जन्म से पहले ही ..(रोता है।).........
लेकिन प्रभु, मैं अकेला नहीं हूँ। नत्थू के पिता अमराराम ने भी अपनी बच्ची को जन्मते ही मार दिया था।
नत्थू : (गुस्से से) पण्डित दादा, थोड़ी तो शर्म करो। मेरे पिताजी स्वर्ग में बैठे हैं क्यों उनका नाम बदनाम कर रहे हो।
चित्रगुप्त : ये बिल्कुल सही बात है नत्थू, लिस्ट में उनका नाम भी है, और इसी गलती की वजह से अमराराम जी स्वर्ग में नहीं, नरक में विराज रहे हैं । (नत्थू का सिर शर्म से झुक जाता है तथा गाँव वाले हँसते हैं।)
शिव : (हल्का सा डाँटते हुए) ये हँसने की बात नहीं है। आप में से भी बहुत लोगों ने ऐसे बुरे काम कर रखे हैं, उनके लिये भी नरक के दरवाजे खुले रहेंगे । (शिवजी का मोबाइल बजता है, मोबाइल स्विच आन कर कान से लगाते हैं। हैलो शिवजी स्पीकिंग....... हाँ नारद जी, बताइये .......... जी मिल गयी?.......... हाँ तो इसमे पूछने की क्या बात है? आ जाओ (फोन रखते हैं।) ले भई नत्थू, पार्वती जी भी आ रही हैं। अब उनको बताएँगें, तेरी समस्या का शायद वो ही कोई हल निकालें।

(पार्वती जी व नारद जी का प्रवेश होता है। पार्वती जी शिवजी से मुँह मोड़कर खड़ी होती हैं।)

नारद : नारायण-नारायण प्रणाम प्रभु।
शिव : प्रणाम मुनिवर, कर आये भारत भ्रमण?
नारद : नारायण-नारायण! प्रभु, भ्रमण माता पार्वती कर के आयी हैं, मैं तो इनके पीछे-पीछे चल के आया हूँ। अब माता ही बताएँगी।
पार्वती : अब बार-बार क्या बताएँ? मैने तो तीन दिन पहले ही बताया था कि धरती पर बड़ी समस्या हो रही है।
शिव : अच्छा भाग्यवान, गलती हो गयी। अब बता भी दो। क्या समस्या हो रही है?

(पार्वती जी मुँह फेर लेती हैं।)

नारद : नारायण-नारायण! समस्या एक नहीं है भगवन। कई अलग-अलग समस्याओं का मिला जुला रूप है और इसीलिये ये एक बड़ी समस्या है प्रभु।
शिव : फिर इसमें डरने वाली क्या बात है? (गर्व से) विविधता में एकता तो भारत की पहचान है। खैर, वो समस्या है क्या?
पार्वती : (हल्के गुस्से से) जनसंख्या बढ़ रही है, लोगों का स्वास्थ्य गिर रहा है। आदमी औरतों का अनुपात गड़बड़ा रहा है।
शिव : (गम्भीर होते हुए) इन सबका कोई कारण भी तो पता चला होगा।
नारद : नारायण-नारायण! लोगों में समझ और जानकारी की कमी ही इसका कारण है प्रभु।
शिव : हाँ, ये बात एकदम सही है। लोगों की समझ में तो कुछ आता ही नहीं। मैं भी इन लड़कों को समझा रहा हूँ, पर ये ब्याह करने के नुकसान समझ ही नहीं रहे।
पार्वती : ब्याह में कैसा नुकसान प्रभु? ब्याह तो अच्छा काम है होना ही चाहिये। और ब्याह से आपको क्या नुकसान हुआ, मैं भी तो सुनुँ।

(शिवजी लाचार महसूस करते हैं तथा चित्रगुप्त की तरफ़ देखते हैं।)

चित्रगुप्त : (बात को संभालते हुए) अच्छा काम तो है माता, पर उसके लिये लड़की भी होनी चाहिये। इस नत्थू के खाते में एक तो लड़की का नाम नहीं है, ऊपर से इसके सिर में सफेद बाल आ गये।
नत्थू : (हाथ जोड़कर) क्यों शर्मिन्दा कर रहे हो प्रभु, मुझे नहीं करवाना ब्याह। मेरे पिताजी के हाथों जो बुरा काम हुआ था उसकी सजा वो तो भुगत ही रहे हैं, अब मैं भी उसका पूरा प्रायश्चित करूँगा।
धोल्या : (गुस्से में) अरे तू प्रायश्चित करेगा पर सब लोग तो नहीं करेंगे। मेरा तो ब्याह होने दे।
पार्वती : इसमें नाराज होने की क्या बात है धोल्या? तेरा ब्याह अभी करवा देंगे।
धोल्या : (उदास होकर) पर चित्रगुप्त जी कह रहे हैं कि मेरे खाते में किसी लड़की का नाम ही नहीं है।
शिव : इसमें चित्रगुप्त जी का कोई कसूर थोड़े ही ही है। लोगों के पाप किये हुए हैं, उनका हिसाब इन्हें रखना ही पड़ता है।

(ये सुनकर धोल्या उदास हो जाता है।)

पार्वती : (धोल्या को पुचकारते हुए) तू उदास मत हो धोल्या, खाते में लड़की भी आ जायेगी पर तुझे मेरी एक बात माननी पड़ेगी।
धोल्या : (उछलते हुए) एक नहीं सौ बात मानूँगा आप कह के तो देखो।
पार्वती : ठीक है, अब से तू लोगों को कन्या का महत्व समझाएगा और लोगों को कन्या की हत्या करने से रोकेगा।
पण्डित : माता धोल्या ही नहीं, मैं भी इस काम में पूरा साथ दूँगा।
नत्थू : हम सब लोग भी आपके साथ रहेंगे (गाँव वालों से) क्यों भाईयों?
सब लोगः हाँ साथ रहेंगे।
शिव : ब्याह करवाने के लिए, सब लोग उल्टे भी लटक जायेंगे। पर ये आप बहुत बड़ी गड़बड़ कर रही हैं। चित्रगुप्त जी का सारा हिसाब बिगड़ जायेगा।
पार्वती : (शिवजी की बात अनसुनी करते हुए) चित्रगुप्त जी, धोल्या के खाते में एक लड़की का नाम लिखो और उस लड़की को ढूँढने का काम करेंगे नारद जी।

(नारद और चित्रगुप्त दोनों हाँ भरते हैं।)

शिव : (मौके का फायदा उठाते हुए) ठीक है भई, माँ-बेटों के बीच में आने वाले हम कौन होते हैं? हम तो कैलाश पर जाकर हमारी भाँग ही घोट लेते हैं। आइये चित्रगुप्त जी।

(शिवजी एक तरफ़ चले जाते हैं, चित्रगुप्त जी उनके पीछे-पीछे दो कदम चलकर रूकते हैं और पार्वती जी को देखते हैं फिर शिवजी को देखते हैं। पार्वती जी सब कुछ समझते हुए दौड़कर शिवजी के पीछे जाती हैं। उनके पीछे-पीछे नारद जी जाते हैं और उनके पीछे चित्रगुप्त जी जाने लगते हैं, दो कदम चलकर कुछ याद करते हुए वापस मुड़कर आते हैं।)

चित्रगुप्त : (दर्शकों से) भाईयों, धोल्या की किस्मत अच्छी थी जो माँ पार्वती बीच में आ गयी और उसका जुगाड़ करवा गयी, पर तुम लोग ध्यान रखना, नहीं तो.... अगर एक बार खाते से लड़की का नाम मिट गया तो दुबारा नहीं लिखूँगा।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

कमाल कोरोना का
|

(नारायण! नारायण! कहते खड़ताल बजाते देवर्षि…

बॉर्डर क्रासिंग: एक लफड़ा
|

सारांश:- अमेरिका ने जब इराक पर आक्रमण किया…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

प्रहसन

कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं