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क्यों चिरकाल जियूँ

स्वप्निल से युगल नयन
देख वन उपवन, करें मेरा चयन
अली के अलि से लोचन मुझे निहारें
मधुमय मैं.. और मुझ में मधु ढारें
तोड़ डाली से, अधरों से चूम,
जब कोमल कपोल छुआए
देख सौभाग मेरा मदन भी लजाए

 

ऐसी मादक हो मृत्यु तो..
क्यों न मद्यपान करूँ
क्यों चिरकाल जियूँ और डाली से झरूँ

 

कभी बन प्रणय उपहार कह दूँ अनकही बातें
कभी बन शैय्या शृंगार, कर दूँ मधुर मधुमय रातें
बन के वरमाला, बाँधूँ आजीवन बन्धन
कभी बिखर पथ में, करूँ वीरों का अभिनन्दन
देव चरणों में श्रद्धा बन अंजुरी से हुआ अर्पित
प्रसाद बनूँ अंजुरी में, होता याचक अनुगृहीत

 

देवे देव जब सहस्त्र रूप,
तो क्यों एक ही रूप धरूँ
क्यों चिरकाल जियूँ और डाली से झरूँ

 

ज्यूँ शलभ दीपशिखा पर मर मिटता है
निश्चित है मृत्यु, पर न पथ से डिगता है
कर अधरपान होता विलीन ज्वाला में
जैसे हो प्रेमी मदोन्मत्त प्रेम-हाला में
दैवाधीन है मेरा भी मिलन
बनेगा सुमन औ’ सौन्दर्य युग्मन

 

फिर नियति से ठान रार,
क्यूँ विरंचि से वैर धरूँ
क्यों चिरकाल जियूँ और डाली से झरूँ

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