क्यों फैला है भ्रष्टाचार
काव्य साहित्य | कविता संजीव कुमार बब्बर27 Feb 2014
अपने मन में अक्सर सोचा करता हूँ कई बार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
नेता और अधिकारी सारे क्यों हैं मालामाल
मेहनतकश और मज़दूर देश का हो गया कंगाल
वीर सिपाही सीमा पर करता यही पुकार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
अनेक धर्म हैं अनेक भाषा, फिर भी एक तिरंगा
हिन्दू और मुस्लिम के बीच में क्यों होता है दंगा
मैंने देखा इन्सानियत को बिकते बीच बाज़ार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
कभी तो मानव जागेगा लिए बैठा यही आस
करेगा सो भरेगा तू क्यों है बब्बर उदास
साई कहते इस जग में मतलब का व्यवहार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
ग्यारह बच्चे घर में हैं पर है जनगणना अधिकारी
औरों को शिक्षा देते कहाँ गई अकल तुम्हारी
झट से बोले सब ज़ायज, है यहाँ अपनी है सरकार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
बचपन में पापा कहते थे ईश्वर भाग्य विधाता है
जन्म देने वाली माँ से बढ़कर अपनी भारत माता है
आज ईमानदार और सत्यवादी बहुत हो चुका लाचार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
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