क्यूँ? (भव्य गोयल)
काव्य साहित्य | कविता भव्य गोयल15 Oct 2020 (अंक: 167, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
जिसकी इच्छा के विरुद्ध,
पेड़ से इक पत्ता न गिरता है,
सर्वशक्तिमान उस ख़ुदा से बच्चा,
क्यों मृत्यु माँगता फिरता है?
जीने की ही चाह नहीं,
या दुनिया से वो डरता है,
जिससे दुनिया धन-दौलत माँगे,
उनसे क्यों मृत्यु-माँग करता है?
जिसके नेत्रों में दिव्य तेज,
तथा बड़े-बड़े अरमान हैं,
वह भोला-भाला आख़िर,
किस चीज़ से परेशान है?
सबसे प्रेम भाव रखता,
सबका करता सम्मान है,
ख़ुद का जीवन क्यों उसे,
लगता इक अपमान है?
देश के इन भविष्यों की,
क्यो जीने से टूटी डोर है,
जिस नींव को सुदृढ़ होना था,
क्यो रह गई कमज़ोर है?
पूछो कारण - बतलाए वो,
न विपत्ति धन या अनाज है,
जीवन से ही थक गया हूँ,
जड़ शायद ये समाज है?
जीने का क्या ही फ़ायदा,
जो पल-पल मन से मरता है,
फिर लोग पूछे बालक से,
तू क्यों अब न निखरता है?
जिसकी इच्छा के विरुद्ध,
पेड़ से इक पत्ता न गिरता है,
सर्वशक्तिमान उस ख़ुदा से बच्चा,
क्यों मृत्यु माँगता फिरता है?
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