लग रहा था कि घर में तन्हा हूँ
शायरी | ग़ज़ल बलजीत सिंह 'बेनाम'1 Apr 2020 (अंक: 153, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
लग रहा था कि घर में तन्हा हूँ
मैं तो लेकिन नगर में तन्हा हूँ
साथ मेरे है क़ाफ़िला फिर भी
है तआज्जुब सफ़र में तन्हा हूँ
चाहने वाले हैं हज़ार मगर
हर किसी की नज़र में तन्हा हूँ
बुझ चुका इक चराग़ हूँ गोया
कौन सा मैं असर में तन्हा हूँ
मिल ही जाएगा हाँ मुक़ाम मुझे
गर यक़ीनन हुनर में तन्हा हूँ
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