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लेखक के परिचय का सवाल

लेखक से प्रकाशक ने कहा – "आपने अपना परिचय तो किताब पर लिखा ही नहीं! पाठक उसे कैसे खरीदेंगे?"

लेखक ने उत्तर दिया - उसे परिचय क्यों लिखना चाहिए? पढ़ने के लिए सामग्री तो किताब में होती है, लेखक अपना परिचय व्यर्थ में क्यों दे?

"पाठक की मानसिक भूख मिटाने के लिए लेखक के परिचय की भी आवश्यकता होती है।"

"लेखक को पाठक की भूख क्यों मिटानी चाहिए, क्या वह भोजन करके नहीं आता? उसे तो पैसे खर्च करने हैं और पुस्तक को चाटना मात्र है, चबाना नहीं है," - लेखक ने कहा।

"वस्तुतः पाठक यह भी जानना चाहता है कि लेखक ने पहले और क्या-क्या लिखा है? उसकी शैली कैसी है? जब ग्राहक पैसे खर्च करेगा तो उसका रिटर्न भी तो मिलना चाहिए," प्रकाशक बोला।

"मैं सोचता हूँ वे कवर का फ्लैप पढ़कर ही पुस्तक खरीद लेते हैं, अन्य कुछ नहीं पढ़ते," लेखक ने कहा।

"आप गलत हैं, अधिकांश पुस्तक प्रेमी पहले लेखक का परिचय भी पढ़ते हैं, फिर पुस्तक खरीदना या नहीं यह तय करते हैं," प्रकाशक ने उत्तर दिया।

"पुस्तक खरीदने के लिए वे फ्लैप अवश्य पढ़ते हैं, फ्लैप पढ़कर ही वे भाँप लेते हैं कि पुस्तक फ्लॉप तो नहीं है? लेखक का परिचय पढ़ने की अधिक उत्सुकता नहीं रखते, फिर भी आप परिचय लिखने के लिए ज़ोर दे रहे हैं तो मैं लिख देता हूँ पर बताइये, मैं अपने परिचय में क्या लिखूँ?" लेखक ने पूछा।

"यदि पुस्तक या लेखक के परिचय में उनकी रुचि की कोई बात हो तो पाठकगण पुस्तक में खो सकते हैं," प्रकाशक ने मत व्यक्त किया।

"तो क्या फिल्मी तारिकाओं की अंदरूनी सेक्स स्कैंडल वाली कथा लिख दूँ? पाठक तो उन्हें ही पढ़ना चाहेंगे, अथवा किसी माफिया के षडयंत्र का पर्दाफाश करूँ तब पाठक पुस्तक खरीदेंगे? खूब से खूब मैं पाठकों को लिख सकता हूँ कि आप मेरे मित्र हैं, आपको पुस्तक खरीद लेनी चाहिए," - लेखक ने कहा।

"पुस्तक का ऐसा परिचय देना ठीक नहीं है। किताब के बारे में कुछ ऐसा धाँसू लिखा जाना चाहिए कि पाठक उसे खरीद ही ले!"

"तब तो मुझे एक बात ही समझ में आती है, मैं लिखूँगा हे प्रिय पाठक, आपने बहुत देर से किताब को हथेलियों के बीच दबाकर रखा है, अब आप पैसा दीजिए और बिना इधर-उधर देखे, पुस्तक खरीदकर बाहर निकल जाइये, इसके पूर्व कि आवारागर्दी करने के आरोप में, कुछ चुराने की आशंका में या व्यर्थ घूमने के अपराध में आप गिरफ्तार कर लिए जाएँ!

हम बहुत देर से आपकी अवांछित गतिविधियाँ सी.सी.टी.वी.केमरे में देख रहे हैं। अब आप किताब को वापिस न रखें, क्योंकि आपकी गंदी अंगुलियों ने उसे बहुत देर से छू रखा है। इस गंदी हो चुकी पुस्तक को अब कोई पढ़ना नहीं चाहेगा। यह परिचय कैसा रहेगा?"

प्रकाशक बोला, "ऐसा नहीं है, जिनके पास हास्य-व्यंग्य का सोच ही नहीं है, वे इस बारीक बात को क्या समझेंगे। वे भी किताब नहीं खरीदेंगे!"

"जिन लोगों में वह बौद्धिक सोच नहीं है, उन्हें मैं बेचना भी नहीं चाहता, आखिर मेरी भी तो भावनाएँ हैं! मेरी पुस्तक उनके हाथों में ही जाए जो हास्य-व्यंग्य को समझते हों," लेखक ने कहा।

"यदि परिचय ठीक शैली में न हो तो पाठक खरीदने के बजाय, उसे पलटकर फेंक कर चले जाते हैं। फिर तो अच्छा हो कि परिचय विहीन पुस्तक ही चली जाए," प्रकाशक ने समझाइश दी।

"ठीक है, पुस्तक में परिचय देने की क्या आवश्यकता है? बिना परिचय के ही इसे प्रकाशित कर दें," लेखक ने कहा और बिना लेखक परिचय के पुस्तक प्रकाशित हो गई।

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