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लुका छुपी 

हाईड एंड सीक : फ्योडोर सोलोगब (मूल लेखक)
अनुवादक : बी.एम. नंदवाना

 

लेलेच्का की नर्सरी में सब कुछ चमकीला, सुन्दर और ख़ुशनुमा था। लेलेच्का की मीठी आवाज़ उसकी माँ को मंत्रमुग्ध कर देती थी। लेलेच्का एक आनंददायी बालिका थी। वैसी कोई दूसरी बालिका न थी, न ही कभी थी, और न ही कभी होगी। लेलेच्का की माँ, सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना, इस बात को लेकर आश्वस्त थी। लेलेच्का की आँखें काली और बड़ी-बड़ी थीं, उसके गाल गुलाबी थे, उसके होंठ चूमने के लिए और खिलखिलाने के लिए बने थे। इन सब विशेषताओं के अलावा लेलेच्का उसकी माँ की इकलौती संतान थी और लेलेच्का की हर हरकत उसकी माँ को सम्मोहित करती थी। लेलेच्का को अपने घुटनों पर बिठा कर उससे लाड़-लड़ाना, दुलारना, उस छोटी बालिका के स्पर्श को अपनी बाँहों में महसूस करना, उसके लिए किसी स्वर्गसुख से कम नहीं था। – एक जीवंत वस्तु, उछलती-कूदती और प्रफुल्लित एक नन्ही-सी चिड़िया जैसी।

सच कहें तो, सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना को केवल नर्सरी में ही ख़ुशी की अनुभूति होती थी। अपने पति के साथ वह स्वयं को सर्द और निरुत्साहित पाती थी। 

संभवतः इसका कारण यह था कि स्वयं उसे ठंड से लगाव था – उसे ठंडा पानी पीना और ठंडी हवा में साँस लेना अच्छा लगता था। वह सदैव तरो-ताज़ा व शांत रहता था, चहरे पर एक उदासीन मुस्कराहट ओढ़े, और जहाँ से वह गुज़रता, ऐसा लगता हवा के भीतर ठंडी धारा प्रवाहित हो रही थी।

सेर्गे मोदेस्तोविच और सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने बिना किसी प्यार-मोहब्बत या हिसाब-किताब किये शादी की थी, बस दोनों ने इसे एक नियति के रूप में स्वीकार कर लिया था। वह पैंतीस वर्ष का युवक था, वह पच्चीस वर्ष की युवती थी; दोनों एक ही समुदाय से आते थे और उनका पालन-पोषण अच्छी तरह से हुआ था; उससे अपेक्षा थी कि अब वह शादी कर ले और सेराफ़िमा के लिए भी शादी करने का समय आ गया था। 

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना को ऐसा लगा भी था कि वह अपने भावी पति से प्रेम करती थी और वह इस बात से ख़ुश थी। वह दिखने में सुन्दर, अच्छे खानदान से था; उसकी सुबोध भूरी आँखें सदैव एक गरिमामय अभिव्यंजना को समेटे रहतीं; और वह एक मंगेतर के अपने कर्तव्यों का निर्वाह अनिंद्य शिष्टता के साथ करता था।

दुल्हन भी सुन्दर थी; वह लम्बी थी, गहरी काली आँखें, काले बाल, थोड़ी संकोचशील परन्तु बहुत ही व्यवहारकुशल। दुल्हे को उसके दहेज़ से कोई विशेष सरोकार नहीं था, हालाँकि उसे यह सुखद लगता था कि उसके पास कुछ है। उसके अपने कनेक्शन्स थे, और उसकी पत्नी एक अच्छे सभ्रांत परिवार की थी। यह उसके लिए, किसी उचित अवसर पर, उपयोगी हो सकता था। अनिंद्य और शिष्ट व्यवहार के धनी मोदेस्तोविच ने अपनी पोज़ीशन को पाने में इतनी जल्दबाज़ी कभी नहीं दिखाई कि लोग उससे ईर्ष्या करें और न ही रफ़्तार इतनी धीमी रखी कि वह किसी पर ईर्ष्या करे – सब कुछ नपा-तुला और समयोचित।

उनकी शादी के बाद सेर्गे मोदेस्तोविच के व्यवहार में ऐसा कुछ भी दृष्टव्य नहीं था जो उसे अपनी पत्नी की नज़रों में ग़लत ठहराता। बाद में, हालाँकि, जब उसकी पत्नी को संतान होने वाली थी, सेर्गे मोदेस्तोविच ने कुछ हलके-फुल्के कनेक्शन्स कुछ समय के लिए इधर-उधर जोड़े थे। सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना को इस बारे में मालूम पड़ गया था, और, इस बात से वह हैरान थी कि उसे कोई विशेष आघात नहीं पहुँचा था; उसकी संतान-प्राप्ति की व्याकुलता और अधीरता उसके दूसरे सभी जज़्बातों को निगल गयी थी।

एक प्यारी-सी नन्ही बच्ची पैदा हुई; सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने स्वयं को उसे समर्पित कर दिया था। शुरू-शुरू में वह उत्साह व उमंग से, लेलेच्का के साथ के आनंदित क्षणों को अपने पति के साथ साझा करती थी। परन्तु शीघ्र ही वह जान गयी कि इन बातों में उसकी लेश मात्र ही दिलचस्पी नहीं थी; कि वह केवल अपनी आदत के अनुसार विनीत भाव से सुनता था। सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना धीरे-धीरे उससे दूर होती चली गयी। वह अपनी नन्ही परी से उस अतृप्त भाव से प्यार करती थी, जिसे दूसरी औरतें अपने पतियों को धोखा देकर, इत्तिफ़ाक़ से मिले जवान आशिक़ों के प्रति दर्शाती थी।

ममोच्का, आओ प्रिआत्की (लुका-छुपी) खेलते हैं,” वह चिल्लाती, का उच्चारण करते हुए, कि शब्द ‘प्लिआत्की’ सुनाई देता।    

यह साफ़ न बोल पाने की जादुई असमर्थता, सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना के चेहरे पर एक ममतामयी कोमल मुस्कराहट बिखेर देती। लेलेच्का ऐसा कह कर भाग जाती, अपने गुदगुदे पाँवों की छाप कारपेट्स पर छोड़ते हुए, और स्वयं को अपने बिस्तर के पास, पर्दों के पीछे छिपा देती। 

टियु-टियु”, ममोच्का!” वह अपनी मीठी, हँसी हँसते हुए कूकती, परदे के पीछे से शरारती आँख से बाहर की ओर देखते हुए।

“कहाँ है मेरी बच्ची?” माँ पूछती, लेलेच्का को ढूँढ़ती हुई, उसे विश्वास दिलाते हुए कि उसने उसे नहीं देखा है।

और लेलेच्का अपने छिपने के स्थान से अपनी तरंगित खिलखिलाहट उड़ेलती। और फिर वह थोड़ा आगे आती, और उसकी माँ, जैसे उसने अभी-अभी उसे देखा हो, उसके छोटे कंधों को पकड़ लेती और ख़ुशी से चिल्लाती, “यहाँ है मेरी लेलेच्का!”

लेलेच्का देर तक ख़ुशी से हँसती, उसका सिर उसकी माँ के घुटनों के बिलकुल पास होता, और वह अपनी माँ के गोरे हाथों के बीच लिपट जाती। उसकी माँ की आँखें भावावेश से प्रदीप्त हो उठतीं।

“अब, ममोच्का, तुम छिपो,” लेलेच्का, अपनी खिलखिलाहट रोक कर कहती। 

उसकी माँ छिपने जाती। लेलेच्का घूम जाती ताकि उसकी ममोच्का उसे न दिखाई दे, हालाँकि ऐसा करते हुए चोरी से अपनी ममोच्का को हर समय देखती रहती। माँ अलमारी के पीछे छिप जाती, और चिल्लाती: “टियु-टियु, मेरी बच्ची!”

लेलेच्का कमरे में चक्कर लगाती, और सभी कोनों में देखती, विश्वास दिलाती हुई, ठीक वैसे ही जैसे पहले उसकी माँ ने किया था, कि वह उसे ढूँढ़ रही है, हालाँकि वास्तव में उसे हर समय मालूम रहता कि उसकी कहाँ खड़ी है।

“कहाँ है मेरी ममोच्का!” लेलेच्का पूछती। “वह यहाँ नहीं है, और वह यहाँ नहीं है,” इस कोने से उस कोने तक चक्कर लगाते हुए दोहराती रहती।

उसकी माँ साँस रोके खड़ी रहती, सिर दिवार से सटा हुआ, बाल कुछ अव्यवस्थित से। परम आनंद की मुस्कराहट उसके लाल ओंठों पर खेलती रहती।

नर्स, फ़ेदोस्या, भले स्वभाव की सुन्दर स्त्री, कुछ मंद-बुद्धि, अपनी मालकिन को देखकर अपने विशिष्ट अंदाज़ में मुस्काई, ऐसा आभास देते हुए कि उसका मालकिन की मौज-मस्ती में दख़ल देना उचित नहीं है। उसने मन ही मन सोचा, “माँ स्वयं एक बालिका की तरह लग रही है। देखो! वह कितनी उत्साहित है।”

लेलेच्का उसकी माँ के कोने की ओर आ रही थी। इस दिलचस्प खेल में उसकी माँ क्षण प्रति क्षण अधिक से अधिक डूबती जा रही थी; उसका दिल छोटी-छोटी साँसों के साथ से धड़क रहा था, उसने स्वयं को एकदम दिवार से सटा लिया, बाल कुछ और अव्यस्थित हो गए। लेलेच्का ने अचानक अपनी माँ के कोने की ओर नज़रें घुमाई और ख़ुशी से चिल्लाई। 

“मैंने तुम्हें धूंध लिया,” वह ख़ुशी के मारे ज़ोर से चीखी, अपने शब्दों का ग़लत उच्चारण करते हुए, जिसे सुनकर उसकी माँ फिर से आनंदविभोर हो गयी।

वह अपनी माँ का हाथ पकड़ कर उसे कमरे के बीचों-बीच ले आई, वे ख़ुश थे, वे हँस रहे थे; लेलेच्का ने फिर से अपना चेहरा माँ के घुटनों के बीच छिपाया, और अपने प्यारे बोलों में तुतलाती रही.. और तुतलाती रही, कितना मनमोहक, मगर कितना बेढंगा। 

उसी समय सेर्गे मोदेस्तोविच नर्सरी की तरफ़ आ रहा था। अधखुले दरवाज़े से उसने कमरे से आती खिलखिलाहट, उछल-कूद की आवाज़ सुनी। वह नर्सरी में दाख़िल हुआ, अपनी विशिष्ट उदासीन मुस्कराहट ओढ़े; वह बड़े ही सलीक़े से कपड़े पहने था, और वह तरोताज़ा और सीधा- तना-सा लग रहा था, और अपने चारों ओर स्वच्छता, ताज़गी और उदासीनता का वातावरण फैला रहा था। रोचक-जीवंत खेल के बीच वह वहाँ दाख़िल हुआ, और उसने अपने ठंडेपन से सब कुछ अस्तव्यस्त कर दिया। यहाँ तक कि फ़ेदोस्या ने भी मालकिन और स्वयं को लेकर शर्मिंदगी महसूस की। सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना तुरंत चुप हो गयी, और भावशून्य भी। यह सब देखकर हँसती-खिलखिलाती बालिका भी सहसा चुप हो गयी, और अपने पिता को चुपचाप अर्थपूर्ण नज़रों से देखने लगी।

सेर्गे मोदेस्तोविच ने कमरे के चारों ओर एक उड़ती-सी नज़र डाली। उसे यहाँ आना पसंद था, क्योंकि सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने नर्सरी को क़रीने से सजा-सँवार रखा था; उसकी चाह थी कि उसकी नन्ही बच्ची शैशवकाल से ही केवल मनोरम वस्तुओं से घिरी रहे। वह बड़ी नफ़ासत के साथ अपनी पोशाक पहनती, और वह लेलेच्का को भी सुरुचि से तैयार करती। उसकी पत्नी का कमोबेश हर समय नर्सरी में बने रहना एक ऐसा कारण था जिसके साथ सेर्गे मोदेस्तोविच सामंजस्य नहीं बिठा पाया था।

“वही हुआ, जो मैंने सोचा था... मुझे मालूम था कि तुम नर्सरी में ही होगी,” उसने उपहासपूर्ण और उसे नीचा दिखाने के लहज़े में मुस्कुराते हुए कहा। 

दोनों नर्सरी से एक साथ बाहर आये। जब वह अपनी पत्नी के पीछे दरवाज़े तक आया, अप्रत्याशित रूप से, कुछ तटस्थ भाव से, अपने शब्दों पर ज़ोर न देते हुए सेर्गे मोदेस्तोविच ने कहा: “तुम्हें नहीं लगता है कि इस नन्ही बच्ची के लिए यह ठीक रहेगा कि कुछ समय वह तुम्हारी कंपनी के बग़ैर रहे? देखो, महज़ इसलिए कि बच्चे को अपनी वैयक्तिकता का अहसास होनी चाहिए,” सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना को परेशान देख कर उसने सफाई दी।

“वह अभी बहुत छोटी है,” सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने कहा।

“बहारहाल, यह मेरी विनम्र राय है। मैं तुम पर ज़ोर नहीं डाल रहा हूँ। वहाँ तुम्हारा साम्राज्य है।”

“मैं इस बारे में सोचूँगी,” उसकी पत्नी ने जवाब दिया, वह अपनी आदत के अनुसार ठंडेपन से लेकिन शालीनता से मुस्कुराया।

फिर वे किसी और बात में मशग़ूल हो गए। 

II

उस शाम नर्स फ़ेदोस्या, रसोईघर में बैठी, सदैव चुप रहने वाली नौकरानी दारया और बड़बोली पुरानी कुक अगाथ्या से घर की नन्ही मालकिन के बारे में बात कर रही थी - कि किस प्रकार उसे अपनी माँ के साथ प्रिआत्की खेलना अच्छा लगता है। – “वह अपना नन्हा चेहरा छिपा लेती है, और टियु-टियु चिल्लाती है।”

“और मालकिन खुद एक छोटी बालिका की तरह है,” फ़ेदोस्या ने मुस्कुराते हुए जोड़ा।

अगाथ्या ने ध्यान से सुना और इसे अपशकुन मानते हुए उसने अपना सिर हिलाया; उसका चेहरा गंभीर हो गया और चिंता की रेखाएँ उभर आयीं।

“मालकिन ऐसा करती है, वह अलग बात है; लेकिन नन्ही बच्ची ऐसा करती है, वह बुरा है।”

“क्यों?” फ़ेदोस्या ने जिज्ञासावश पूछा।

इस जिज्ञासा के भाव ने उसकी मुखाकृति को लकड़ी की एक आधी-अधूरी रँगी गुड़िया का रूप दे दिया।

“हाँ, यह बुरा है,” अगाथ्या ने दृढ़ विश्वास के साथ दोहराया। “बहुत बुरा है।”

“अच्छा!” फ़ेदोस्या ने कहा, उसके चेहरे पर आया जिज्ञासा का हास्यास्पद भाव अब अधिक स्पष्ट हो गया था। 

“वह छिप जायेगी, छिपती जायेगी, और सदा के लिए ओझल हो जायेगी,” धीमी किन्तु रहस्यमय आवाज़ में, अगाथ्या ने कहा, उस समय उसकी चौकस निगाहें दरवाज़े की ओर थीं।

“यह तुम क्या कह रही हो?” भयभीत फ़ेदोस्या चिल्लाई।

“यह सत्य है, जो मैं कह रही हूँ, मेरे शब्दों को याद रखना,” अगाथ्या उसी विश्वास और रहस्यमयता के साथ कहती रही। “यह एक पक्का संकेत है।”

उस वृद्ध स्त्री ने इस संकेत की कल्पना एकदम अनायास ख़ुद ही कर ली थी; निःसंदेह इस पर उसे गर्व था।

III

लेलेच्का सोई हुई थी, और सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना अपने कमरे में थी, आनंद-विभोर वह लेलेच्का के बारे में सोच रही थी। उसके ख़्यालों में लेलेच्का थी, पहले एक प्यारी, नन्ही लड़की, फिर एक प्यारी बड़ी लड़की, फिर वापस एक आनंदमय छोटी लड़की; और इस तरह आख़िर तक वह मम्मी की छोटी नन्ही लेलेच्का बनी रही।

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने नोटिस ही नहीं किया कब फ़ेदोस्या उसके पास आकर खड़ी हो गयी थी, उसके चेहरे पर चिंता और भय के भाव थे। 

“मैडम, मैडम,” उसने काँपती आवाज़ में धीरे से कहा।

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने शुरुआत की। फ़ेदोस्या के चेहरे ने उसे बैचेन कर दिया था।

“क्या बात है, फ़ेदोस्या!” उसने चिंतित होते हुए पूछा। “लेलेच्का ठीक तो हैं न?

“वह ठीक है मैडम,” अपनी मालकिन को हाथों के इशारे से आश्वस्त करते हुए, फ़ेदोस्या ने कहा। “लेलेच्का आराम से सो रही है, ईश्वर सदैव उसके साथ रहे! किन्तु मुझे आपसे कुछ कहना है – मैं कहना चाहती हूँ कि – लेलेच्का अपने आप को हर समय छिपाती रहती है – यह अच्छा नहीं है।” 

फ़ेदोस्या ने अपनी मालकिन पर आँखें गढ़ा दीं, जो डर के मारे गोल हो गयी थी।

“क्यों अच्छा नहीं है? सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने चिढ़ कर पूछा, एक अस्पष्ट भय से अनायास वशीभूत होकर।

“मैं आपको नहीं बता सकती कि यह कितना बुरा है,” फ़ेदोस्या ने कहा, पर उसके चेहरे पर आत्मविश्वास का भाव स्पष्टरूप से झलक रहा था। 

“प्लीज़, तूँ ज़रा समझदारी से बात कर,” सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने रूखेपन से उसे ग़ौर से देखा, “जो तू कह रही है, मैं बिलकुल नहीं समझ पा रही हूँ।”

“मैडम, ऐसा है कि… यह एक प्रकार का अपशकुन है,” फ़ेदोस्या ने एकाएक सफ़ाई दी, झेंपते हुए। 

“बकवास!” सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने कहा।

वह और आगे कुछ भी सुनना नहीं चाहती थी कि वह किस तरह का अपशकुन था और उसका क्या परिणाम हो सकता था। लेकिन, फिर भी, पता नहीं क्यों, उसके मूड में एक भय का, एक उदासी का भाव आने लगा था, और उसके लिए यह मानना बेहद अपमानजनक था कि एक अनर्गल बेसिरपैर की बात उसकी मनभावन अभिरुचियों में विघ्न डाले, और उसे अन्दर तक उद्वेलित कर दे। 

“मैं जानती हूँ कि संभ्रात लोग शकुन में विश्वास नहीं करते हैं, लेकिन यह अपशकुन है, मैडम,” फ़ेदोस्या ने मातमी आव़ाज में बोलना जारी रखा, “छोटी बच्ची छिप जायेगी, और छिप जायेगी…।”

अकस्मात, उसके आँसू निकल आये, सिसकते हुए बोली: “वह छिप जायेगी, और छिपती जायेगी, और ओझल हो जायेगी, नन्ही दिव्यात्मा, नम कब्र में,” उसने कहना जारी रखा, अपनी एप्रन से आँसू पोंछते हुए और अपना नाक झटका।

“यह सब तुमसे किसने कहा?” सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने धीमी किन्तु सख़्त आवाज़ में पूछा।

“अगाथ्या ऐसा कहती है, मैडम,” फ़ेदोस्या ने उत्तर दिया; वही है जो जानती है।”

“जानती है!” सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना क्रोध में चिल्लाई, जैसे वह किसी तरह इस आकस्मिक घबराहट से ख़ुद को बचा लेना चाहती थी। “क्या बकवास है! प्लीज़ इस तरह की धारणाएँ लेकर आइन्दा मेरे पास मत आना। अब तुम जा सकती हो।”

खिन्न फ़ेदोसिया -उसकी भावनाओं को ठेस पहुँची थी -अपनी मालकिन को छोड़ बाहर आ गयी। 

“ये क्या बकवास है! गोया मेरी लेलेच्का मर सकती है!” सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने मन ही मन सोचा, लेलेच्का की संभावित मृत्यु के विचार से उत्पन्न उदासीनता और भय के भावों की जकड़न से ख़ुद को मुक्त करने की कोशिश करते हुए। सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने सोच-विचार के बाद, उन स्त्रियों के शकुन-अपशुकन पर विश्वास को उनकी अज्ञानता के मत्थे मढ़ा। उसे साफ़-साफ़ नज़र आया कि एक बच्चे के बिलकुल सामान्य-से खेल एवं उसके जीवन की निरंतरता के बीच कोई संभावित सम्बन्ध नहीं हो सकता। उस शाम उसने विशेष प्रयास किया कि वह अपने दिलो-दिमाग़ को दूसरी बातों में व्यस्त रखे, लेकिन घूम-फिर कर उसके विचार अनायास उसी तथ्य पर आ टिकते कि लेलेच्का को ख़ुद को छिपाना अच्छा लगता था।

जब लेलेच्का काफ़ी छोटी थी, और उसे अपनी माँ और अपनी नर्स का अंतर समझ में आने लगा था, वह कभी-कभी नर्स की बाँहों में बैठी हुई, अचानक शातिर चेहरा बनाती, और अपने हँसते चेहरे को नर्स के कन्धों में छिपा देती थी। फिर शरारती नज़रों से बाहर देखती थी।

उन दिनों, नर्सरी में मालकिन की अनुपस्थिति के विरल क्षणों में, फ़ेदोस्या ने लेलेच्का को फिर से छिपना सिखाया था; और जब अन्दर आने पर लेलेच्का की माँ ने देखा कि छिपते समय बच्ची बहुत सुन्दर लगती थी, वह स्वयं अपनी नन्ही बच्ची के साथ लुका-छिपी खेलने लगी।

IV

अगले दिन सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना अपनी नन्ही बच्ची की लाड़-दुलार और देख-भाल में व्यस्त हो गयी और फ़ेदोस्या के पिछले दिन कहे शब्दों को भूल गयी थी। 

परन्तु जब वह नर्सरी लौटी, डिनर का ‘ओर्डर देने के बाद, उसने लेलेच्का को टेबिल के नीचे से अकस्मात् “टियु-टियु” कहते हुए सुना, भय की अनुभूति ने अचानक उसे अपनी गिरफ़्त में ले लिया। हालाँकि इस निराधार, अंधविश्वासी आशंका के लिए उसने अपने आपको तत्काल धिक्कारा, फिर भी वह लेलेच्का के पसंदीदा खेल की आत्मा से स्वयं को अपने पूरी तरह से नहीं जोड़ पायी, और उसने लेलेच्का का ध्यान कहीं और खींचने की कोशिश की।

लेलेच्का बहुत ही प्यारी और आज्ञाकारी बच्ची थी। उसने माँ की इस नई इच्छा की पालना तत्परता से की। लेकिन, क्योंकि अपनी माँ से दूर किसी कोने में जाकर छिपने की, और “टियु-टियु” कहने की उसकी आदत हो गयी थी, इसलिए उस दिन भी उसने एक से अधिक बार उस खेल को दोहराया।

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने लेलेच्का को बहलाने की भरसक कोशिश की। यह आसान नहीं था क्योंकि व्याकुल करनेवाले, डरावने विचार बराबर उसके मन में जबरन आते-जाते रहे।

“क्यों लेलेच्का टियु-टियु को बार-बार याद करती है? क्यों वह एक ही चीज़ से थकती नहीं है – अपनी आँखों को हमेशा बंद करने से, और अपना चेहरा छिपाने से? शायद,” सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने सोचा, “वह बाहरी दुनिया से इतनी जुड़ी हुई नहीं है, जितने कि दूसरे बच्चे, जो बहुत सारी चीज़ों की ओर आकर्षित होते हैं। अगर ऐसा है तो क्या यह उसकी जैविक कमज़ोरी का चिह्न नहीं है? क्या यह जीवित रहने की उसकी अचेत अनिच्छा का जीवाणु तो नहीं है?”

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना को पूर्वबोध की यातना ने जकड़ लिया। उसे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी कि उसने फ़ेदोसिया के सामने लेलेच्का के साथ लुका-छिपी खेलना बंद कर दिया था। लेकिन यह खेल उसके लिए पीड़ादायक हो गया था, बहुत ही पीड़ादायक क्योंकि वास्तव में वह खेलना चाहती थी, क्योंकि कुछ था जो उसे ख़ुद को लेलेच्का से छिपाने और छिपी हुई बच्ची को ढूँढ़ने के लिए बेतहाशा आकर्षित कर रहा था। सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने स्वयं एक या दो बार खेल की शुरुआत की, मगर वह बड़े ही भारी मन से खेली। उसे बहुत ही पीड़ा हुई मानों वह जानबूझ कर कोई बुरा काम काम कर रही हो। 

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना के लिए वह बहुत ही दुखद दिन था। 

V

लेलेच्का को नींद आ रही थी। जैसे ही वह छोटे से पलंग पर चढ़ी, जो चारों ओर से जाली से सुरक्षित था, थकान के मारे उसकी आँखें बंद होने लगीं। उसकी माँ ने उसे नीले रंग का कम्बल ओढ़ा दिया। लेलेच्का ने कम्बल के अन्दर से अपने प्यारे नन्हे हाथ बाहर निकाले और अपनी माँ को गले लगाने के लिये फैलाये। उसकी माँ नीचे झुकी। लेलेच्का ने अपनी माँ को चूमा और अपना सिर सिरहाने पर गिरने दिया, उसके निद्रालु चेहरे पर करुणा के भाव थे। जैसे ही उसके हाथ कम्बल के अन्दर छिप गए, लेलेच्का बुदबुदाई: “मेरे हाथ टियु-टियु!” 

ऐसा लगा कि माँ की दिल की धड़कनें रुक गयीं थीं – लेलेच्का वहाँ लेटी हुई थी कितनी छोटी, कितनी कोमल, कितनी शांत। लेलेच्का धीरे से मुस्कुराई, अपनी आँखे बंद की और धीमे स्वर में कहा: “मेरी आँखें टियु-टियु!” फिर उससे भी धीमे स्वर में: “लेलेच्का टियु-टियु!”

इन शब्दों के साथ वह सो गई। वह कम्बल के अन्दर कितनी छोटी, कितनी कमज़ोर लग रही थी। उसकी माँ ने शोकाकुल आँखों से उसे देखा।

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना काफ़ी समय तक उसके बिस्तर के पास खड़ी रही, और लेलेच्का को ममता-करुणा और भय से निहारती रही।

“मैं एक माँ हूँ: क्या ऐसा हो सकता है कि मैं इसकी रक्षा नहीं कर पाऊँ?” उसने सोचा, तरह-तरह की बीमारियों की कल्पना करते हुए जो लेलेच्का को हो सकती थी। 

उस रात उसने काफ़ी देर तक प्रार्थना की, परन्तु प्रार्थना उसे अवसाद से बाहर नहीं निकाल पाई। 

VI

कई दिन बीत गए। एक दिन लेलेच्का को सर्दी-ज़ुकाम ने जकड़ लिया। रात को उसे बुख़ार आया। फ़ेदोस्या के जगाने पर, जब सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना, लेलेच्का के पास आई और देखा कि वह बुख़ार में तप रही थी, बहुत ही अशांत, बहुत ही बैचेन, उसे तत्काल उस अपशुकन की याद आई और उन्ही क्षणों से उसे नाउम्मीद मायूसी ने बुरी तरह जकड़ लिया। 

डॉक्टर को बुलाया गया, और वह सब कुछ किया गया जो ऐसे मौक़ों पर अक्सर किया जाता है – लेकिन वही हुआ जो होना था। सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने स्वयं को इस आशा के साथ सांत्वना देने की कोशिश कि लेलेच्का जल्दी ठीक हो जायेगी, और फिर से हँसने-खेलने लगेगी – मगर यह उसे एक असंभव-सी ख़ुशी लगी! लेलेच्का लगातार घंटे-दर-घंटे अशक्त होती जा रही थी। सभी ऊपर से शांतचित्त बने रहे, ताकि सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना घबराए नहीं, परन्तु उनके बनावटी चेहरे उसे अधिक दुखी कर रहे थे। 

जो बात उसे सबसे अधिक कष्ट पहुँचा रही थी, वह थी फ़ेदोस्या का सिसकियों के बीच बार-बार कहना: “उसने ख़ुद को छिपा लिया, ख़ुद को छिपा लिया, हमारी लेलेच्का!”

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना के विचार-प्रक्रिया अस्पष्ट थी, और जो हो रहा था, वह उसे ठीक से समझ नहीं पा रही थी। बुख़ार लेलेच्का पर बुरी तरह हावी था। वह बार-बार अचेत हो रही थी और बेहोशी में बड़बड़ा रही थी। लेकिन जब भी वह होश मे आती, वह अपने दर्द और अपनी थकान को शांत-सौम्यता के साथ बर्दाश्त कर रही थी; वह अपनी ममोच्का को देखकर हल्के से मुस्कुराती, ताकि उसकी ममोच्का को पता नहीं चले की वह कितना-कुछ बर्दाश्त कर रही है। तीन दिन निकल गए, एक दु:स्वप्न जैसी यातना। लेलेच्का बहुत कमज़ोर हो गयी। वह नहीं जानती थी कि वह मर रही थी।

उसने अपनी माँ की ओर अपनी धुँधलाई आँखों से नज़र डाली, और बिलकुल ही धीमी खरखरी आवाज़ में तुतला कर बोली: “टियु-टियु, ममोच्का! टियु-टियु खेलें, मोमोच्का!”

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने लेलेच्का के बिस्तर के पास परदे के पीछे अपना चेहरा छिपा लिया। कितना दुखद! 
ममोच्का!” लेलेच्का ने लगभग सुनाई न देने वाली आवाज़ में कहा। 

लेलेच्का की माँ उस पर झुक गयी, और लेलेच्का ने धुँधली आँखों से अपनी बेबस माँ का हताश सफ़ेद-झक चेहरा आख़िरी बार देखा।

“सफ़ेद ममोच्का!” लेलेच्का बुदबुदाई।

ममोच्का का सफ़ेद चेहरा धुँधला गया, और लेलेच्का के सामने सब कुछ अँधेरे में डूब गया। उसने बिस्तर की चादर का कोना अपने क्षीण हाथों से पकड़ा और फुसफुसाई: “टियु-टियु

उसके गले से कुछ खड़खड़ाने की आवाज़ आई; लेलेच्का ने तेज़ी से ज़र्द पड़ते होंठ खोले और वापस बंद किये, और मर गयी।

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना हक्की-बक्की और निराश थी, जब वह लेलेच्का को छोड़ कर बाहर आई। वह अपने पति से मिली।

“लेलेच्का मर गयी है,” उसने शांत, मंद स्वर में कहा।

सेर्गे मोदेस्तोविच ने व्याकुलता से उसके ज़र्द चेहरे को देखा। उसकी पहले की सजीव ख़ूबसूरत मुखाकृति पर अजीब-सी भावशून्यता देखकर उसे आघात लगा। 

VII

लेलेच्का को तैयार किया, छोटे-से ताबूत में रखा गया और पार्लर ले जाया गया। सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ताबूत के पास खड़ी थी और अपनी मृत बच्ची को यथावत देख रही थी। सेर्गे मोदेस्तोविच अपनी पत्नी के पास गया, और रूखे, खोखले शब्दों से सांत्वना देते हुए, उसने उसे ताबूत से दूर करने की कोशिश की। सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना मुस्कुराई।

“चले जाओ,” उसने धीमे स्वर मे कहा, “लेलेच्का खेल रही है, वह बस एक मिनट में उठ जायेगी।” 

“सीमा डियर, इतना उत्तेजित मत हो,” सेर्गे मोदेस्तोविच ने धीरे-से कहा। “तुम्हें स्वयं को अपने भाग्य पर छोड़ देना होगा।”

“वह एक मिनट में उठ जायेगी,” सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने अपनी बात दोहराई, उसकी आँखें मृत बच्ची पर जमी हुईं थीं।

सेर्गे मोदेस्तोविच ने सजग होकर अपने आसपास देखा: वह अशोभनीय और बेहूदा घटित होने को लेकर भयभीत था।

“सीमा, इतना उत्तेजित होना ठीक नहीं है,” उसने दोहराया, “यह एक चमत्कार होगा, और चमत्कार उन्नीसवीं सदी में नहीं होते हैं।”

जैसे ही उसने ये शब्द कहे, सेर्गे मोदेस्तोविच को, जो घटित हुआ है उससे इन शब्दों की विसंगता का तुरंत आभास हो गया। वह असमंजस में था और स्वयं पर नाराज़ भी।

उसने अपनी पत्नी को बाँहों का सहारा दिया, और सावधानीपूर्वक उसे ताबूत से दूर ले गया। उसने उसका विरोध नहीं किया।

उसका चेहरा शांत लग रहा था और उसकी आँखें शुष्क थीं। वह नर्सरी के अन्दर गयी और कमरे में घूमने लगी, उन कोनों को रुक-रुक कर देखती रही जहाँ लेलेच्का छिपा करती थी। वह कमरे में चारों ओर घूमती हुई कभी-कभी झुक कर पलँग के नीचे या टेबिल के नीचे देख रही थी, और ख़ुश होकर बराबर दोहरा रही थी: “मेरी नन्ही बिटिया कहाँ है? मेरी लेलेच्का कहाँ है?”

एक बार कमरे का पूरा चक्कर लगा लेने के बाद, उसने नए सिरे से ढूँढ़ना शुरू किया। उदास और निस्तब्ध फ़ेदोस्या, एक कोने में बैठी हुई, भयभीत नज़रों से अपनी मालकिन को देख रही थी; अकस्मात् वह सुबकती-सुबकती रो पड़ी, और ज़ोर से चिल्लाई: “उसने खुद को छिपा लिया, और छिपा लिया, हमारी लेलेच्का, हमारी नन्ही परी!”

सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना थर्रा उठी, क्षण-भर को ठिठकी, हैरानी से फ़ेदोस्या को देखा, रोने लगी, और चुपचाप नर्सरी से बाहर आ गयी।

VIII

सेर्गे मोदेस्तोविच ने जल्दी से अंतिम संस्कार किया। उसने देखा कि सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना इस आकस्मिक विपदा से गहरे सदमें में थी, और वह उसकी हालत को लेकर चिंतित था, उसने सोचा लेलेच्का को दफ़नाने के बाद, उसका ध्यान हटाने और सांत्वना देने में अधिक आसानी रहेगी।

अगले दिन सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने विशेष पोशाक पहनी – लेलेच्का के लिए। जब वह पार्लर में दाख़िल हुई, उसके और लेलेच्का के बीच में बहुर सारे लोग थे। पादरी और उसका सहायक कमरे में चहलक़दमी कर रहे थे; नीले धुँए के बादल हवा में तैर रहे थे, और धूप-बत्ती की सुगंध कमरे में व्याप्त थी। जब सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना लेलेच्का की ओर बढ़ी, उसका सिर असह्य पीड़ा से भारी हो रहा था। लेलेच्का वहाँ लेटी थी, शांत और ज़र्द, और मर्मस्पर्शी ढंग से मुस्कुराती हुई। सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना ने अपना गाल लेलेच्का के ताबूत के कोने पर रखा, और दबी ज़ुबान से कहा: “टियु-टियु, नन्ही बच्ची!”

नन्ही-सी बच्ची ने जवाब नहीं दिया। फिर सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना के आस-पास एक प्रकार की हलचल और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई; अनजान चेहरे उसके ऊपर झुके, किसी ने उसको थामा – और लेलेच्का को कहीं ले जाया गया।

 सेराफ़िमा अलेक्संद्रोवना सीधी तनी हुई खड़ी रही, एक पराजित-सी आह भरी, मुस्कुराई, और ज़ोर से आवाज़ दी: “लेलेच्का!”

लेलेंच्का को ले जाया जा रहा था। रोती-सिसकती माँ ने स्वयं को ताबूत पर पटक दिया, लेकिन उसे रोक दिया गया। वह यकायक भाग कर उस दरवाज़े तक आ गयी, जहाँ से लेलेच्का गुज़री थी, वहाँ फर्श पर बैठ गयी, और जैसे ही उसने दरवाज़े के सुराख़ से देखा, वह चिल्लाई: “लेलेच्का टियु-टियु!” 

फिर उसने दरवाज़े के पीछे से अपना सिर बाहर निकाला, और हँसने लगी।

लेलेच्का को जल्दी से अपनी माँ से दूर ले जाया जा रहा था, और जो उसे ले जा रहे थे, ऐसा लग रहा था कि चल नहीं रहे थे, दौड़ रहे थे।

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