माँ पर क्षणिकाएँ
काव्य साहित्य | कविता अवनीश एस. तिवारी3 Jun 2012
१.
दवा की दुकान पर
जाने से कतराता है,
वहाँ से देरी से लौट
खो दी थी उसने,
माँ।
२.
गीता के "निस्वार्थ, निरंतर कर्म" का,
जीवंत उदहारण है,
माँ।
३.
एक बार कहा कि
आज मौसम सर्द है,
और रात भर स्वेटर बुनती रही,
माँ।
४.
निर्मलता की स्याही को,
निश्छलता की कलम में भर,
निस्वार्थ के पृष्ठ पर
वात्सल्य भाव से
जब मैंने एक शब्द उकेरा तो,
वह शब्द बन पड़ा,
माँ।
५.
विपदा में मस्तिष्क का बल,
पीड़ा में मन का संबल,
बन जाती है,
माँ।
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