माँ
काव्य साहित्य | कविता डॉ. पुनीता जैन15 May 2019
उस दिन अलग नहीं हुई तुम
जिस दिन लौटे अंत्येष्टि कर हम
अलग तो छह वर्ष पूर्व हुए थे
वह भी एक मृत्यु थी
इस पार्थिव मृत्यु की तरह
यह मृत्यु भी तुम्हारी विलुप्ति नहीं माँ!
तुम उतर रही हो अब धीरे-धीरे
मेरी बाँहों में उतरती झुर्रियों में
चेहरे की झाँइयों में
मेरी कोशिकाओं से निकल मेरी छाया में
उतरते हुए नित
लौट आती हो मेरी मंद होती चाल में
मेरी गहरी उदासी में...!
जिस तरह धीरे-धीरे गुम होती गयी तुम
मौन के समंदर में
उतर रही हो मेरे अनंत मौन में
उसी तरह!
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