माँ तुम जीवन का सार हो
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शिवांगी श्रीवास्तव1 Oct 2020
माँ तुम जीवन का सार हो
मैं थी ख़ाली स्लेट सी
गीली मिट्टी की गुड़िया
तुमने कभी सिखाकर
कभी समझकर
कभी प्यार से गले लगाकर
जीवन के कई पाठ पढ़ाए।
माँ तुम मायके का सुख हो
तुम्हारे होने से कभी कोई
कमी नहीं रही
तुमने अपने आँचल में
हमारे सारे दर्द समेट लिए
तक़लीफ़ में हमारा संबल
दुख में हमारा साथ जो
माँ तुम जीवन का सार हो
माँ तुम जीने की आस हो
कभी हँसकर कभी कसकर
तुमने रिश्तों को बाँधे रखा है
हम चाहे कितने ही दूर हो
तुमने हर धागा पिरोकर रखा है
आँखों की भीगे कोरों
से लिपटी प्रेम की मज़बूत
बिसात हो
माँ तुम जीवन का सार हो
माँ तुम खाने का स्वाद हो
तुम जैसा खाना कोई और
कभी बना ही नहीं सकता
बच्चों के मन का तुम
अनोखा संवाद हो
जैसे ही कहीं जाती हो
कुछ खो जाता हो मानो
माँ तुम ज़िंदगी की बुनियाद हो
माँ तुम जीवन का सार हो
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