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मानव श्रेष्ठ या तुच्छ

कौवे ने काँव -काँव की आवाज़ के साथ सभी को जंगल के मध्य स्थित ऊँचे टीले पर एकत्रित होने के लिए कहा।

"क्या कोई ख़ास बात है, दादा?" नन्ही सी फुदकी ने फुदकते हुए कहा।

"वो सब तो वहीं आकर पता चलेगा?" कौवे ने हवा में गोता लगाते हुए कहा।

अपराह्न दो बजे खिली हुई धूप में चट्टान के ऊपर सभी पशु-पक्षी एकत्र हुए। सभा किस लिए बुलाई गई थी यह जानने के लिए सभी में उत्सुकता चरम पर थी। सभी एक-दूसरे से खुसुर-फुसुर कर ही रहे थे। तभी सभा के मध्य से कोयल ने मीठी आवाज़ से कहना शुरू किया। 

"जैसा कि आप सब ने आज की न्यूज़ में पढ़ा ही होगा कि किस तरह मानव ने घर बैठे-बैठे ही प्रयोग के लिए चन्द्रमा से मिट्टी को मँगा लेने में सफलता अर्जित की है उसका ऐसा सुखद कारनामा यह सिद्ध करता है कि वह वास्तव में संसार का सर्वश्रेष्ठ और सर्वज्ञ प्राणी है।"

"बेशक, उसके द्वारा किये गये आविष्कार और खोजें अद्भुत हैं जिनसे सर्वथा यह सिद्ध होता है कि वह जगत का सबसे श्रेष्ठ और विज्ञ प्राणी है।" बुलबुल ने अपने ख़ूबसूरत लहँगे को अदा से लहराते हुए कहा।

"पृथ्वी से इतर अन्य ग्रहों को विज़िट करना हो या जगत कल्याण के लिए किए गये अनोखे और बेजोड़ आविष्कार हों, उन सब के लिए मानव के कार्य वास्तव में अद्भुत, अतुलनीय और प्रशंसा के योग्य हैं किंतु इन सबके लिए उसे सर्वज्ञ या सर्वश्रेष्ठ कहना कतई उचित न होगा," सभा में बैठे एक बुज़ुर्ग गिद्ध ने बुलबुल की बात को काटते हुए कहा।

"बेशक, हम ढोर नए आविष्कार करने में असफल रहे है किंतु उस सब की वज़ह भी हमारा आकार, बनावट और प्रकृति ही रही है। इस सबके बावजूद भी हम प्रकृति के हर कण को भली-भाँति परखने की क्षमता रखते हैं। क्या यह हमारी श्रेष्ठता के लिए नक़ाफी है?" सभा में बैठे एक चौपाया ने बुज़ुर्ग का समर्थन करते हुए कहा।

"बेशक, मानव ने अनंत ऊँचाइयों को छू लिया हो किंतु जो क़ुदरत की ही ख़ूबसूरत कृति बिल्ली या नेवले जैसे निरीह प्राणी के आगे से निकल जाने को ही अपशकुन समझता हो तथा एक मानव जो बिना भेदभाव, शुभ घड़ी, साइत, दिन व तारीख़ के विचार के, वंसुधरा पर जन्म लेता है, वहीं समझदार होने पर अपने प्रत्येक कार्य के लिए घड़ी, साइत, व शुभ दिन की तलाश में लग जाता है। मेरे हिसाब से ऐसे मनुष्य जाति को सर्वज्ञ कहना सरासर बेईमानी होगा,"सभा में बैठे एक मर्कट ने कहा।

"बेशक, हमने कोई कीर्तिमान स्थापित नहीं किया है, किंतु शायद! बेहतरीन धरा को सूँघने की क्षमता के कारण ही मेरी आवाम के लोगों को शुनक कहा जाता है; रही बात मानव के श्रेष्ठ कहलाने की, तो उसे श्रेष्ठ कहने में कोई हर्ज़ नहीं है, किंतु उसके द्वारा ख़ुद को सर्वज्ञ कहना मूर्खता पूर्ण होगा। जिसका साक्षात उदाहरण हम जैसे निरीह और नासमझ कहे जाने वाले ढोरों द्वारा जिन पाषाण शिलाओं पर मल त्याग कर यह सिद्ध कर दिया जाता है कि एक निर्जीव प्रस्तर कभी जहांगीर नहीं हो सकता। फिर भी ख़ुद को अतिविवेकी समझने वाला मानव उसी प्रमाणित प्रस्तर को आफरीदगार साबित कर अर्चन करता रहता है। भला उसके अज्ञानी और अज्ञ होने का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है?" बहुत देर से चुपचाप बैठकर सुन रहे एक जर्जर श्वान ने लम्बी साँस छोड़ते हुए कहा।

"इसमें कोई दो राय नहीं, कि मानव की खोजों, उपलब्धियों और सूझबूझ के कारण उसे श्रेष्ठ तो कहा जा सकता है किंतु उसे विवेकशील, संसार का सबसे समझदार व्यक्ति या सर्वज्ञ कहना बिल्क़ुल भी सही न होगा." एक साथ बहुत से पशु-पक्षी ध्वनि मत से बोल पड़े।

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