माँयें अक़्सर कहा करती हैं
काव्य साहित्य | कविता डॉ. पूनम तूषामड़1 Oct 2020
माँयें अक़्सर कहा करती हैं।
पुरानी कहावतें,
परियों के क़िस्से और उनमें बसी
चुड़ैलों की कथाएँ।
माँयें भी तो कभी बेटियाँ ही थीं।
जब मान लिया था उसने
ख़ुशी-ख़ुशी कि औरतें होती हैं
परी और चुड़ैल भी
माँयें सवाल नहीं करती थीं।
अगर कर सकतीं ..तो पूछतीं!
ज़रूर अपनी माँ या सास
या फिर, उसकी सास से
सुलगती भट्टी की चिंगारी को
क्यों ढाँप देना चाहती हो राख से?
आख़िर!आँच पर राख कब
तक डलती रहेगी?
कभी तो टूटेगा बाँध सब्र का
और परंपरा, समझौते का।
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