महकता जीवन
काव्य साहित्य | कविता संजय श्रीवास्तव15 Aug 2021 (अंक: 187, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
याद है मुझको तुम्हारी निगाहों का
मेरी निगाहों से टकरा जाना
लिखना कुछ मेज पर तुम्हारा
और फिर उसको मिटा देना
दबाकर दाँत उँगली में
ढक्कन पेन का चबा जाना
रह रह कर देखना पलटकर
फिर निगाहें चुरा लेना
इशारों को अगर समझ कर
पहचान लिया होता
नहीं होता मेरे हमदम कभी
फिर ज़िंदगी भर रोना।
कशमकश-ए- ज़िंदगी से निकलकर
गर तुम्हे समझ लिया होता
निगाहों की ज़बां को भी
अगर मैंने पढ़ लिया होता
कभी बना बहाना कॉपी का
कभी किसी किताब की दरकार
किसी न किसी बहाने ही सही
घर तेरे पहुँच गया होता
ना बदरंग ये गुलिस्तां होता
और न ये चमन ही सूना होता
हाथ होता तेरा मेरे हाथो में
और महकता ये जीवन होता
आज फिर इक बार प्रिये
तेरा मेरा साथ है
ना सही हाथों में हाथ लेकिन
जीवन भर का साथ है
रब ने फिर मिलाया है हमको
कुछ बात तो इसमें है ज़रूर
कुछ तो उसने भी सोचा होगा
क्यूँ प्रेम अभी भी इन दिलों में है
ईश्वर प्रदत्त इस प्रेम को
अब मंज़िल तक पहुँचाना है
स्वीकार कर इस प्रेम को हमें
जीवन अपना सफल बनाना है
जीवन अपना सफल बनाना है।
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