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महान तितली

विज्ञान की एक किताब थी खुली
उस पर जा बैठी एक तितली
तितली थोड़ी लिखी पढ़ी थी
किसी  ज्ञानी के घर पली बढ़ी थी

 

और अध्याय भी था तितलियों ही का खुला
सो एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा
अब तितली ने धीरे धीरे
गहन अध्ययन शुरू कर दिया
तितलियों का जीव विज्ञान 
अक्षरशः पूरा पढ़ लिया

 

कितनी सारी बातें पढ़ लीं
जो पहले उसने थी कभी ना जानी
पढ़ते पढ़ते यूँ सोचने लगी
मैं पहले थी कितनी अज्ञानी

 

तितलियों के पंखों के विषय में
कुछ इतना ज़्यादा ज्ञान पा लिया
कि उस ज्ञान बोध ने उसको मन को 
बड़ी गहरी चिंता से भर दिया

 

जाना उसने कि तितलियों के पंख
बड़े नाज़ुक और हल्के होते हैं
और तितली के पूरे शरीर का 
भार जाने वे कैसे ढोते हैं
एरोडाइनेमिक्स के किसी भी सिद्धांत से
तितली का तो उड़ना ही है ग़लत
जो इतने बोझ से यदि पंख फट जाएँ
तब कहीं ये बात होगी तर्क सम्मत

 

ये सब बातें जान समझ कर
अध्ययन मनन से स्वज्ञान को पाकर
तितली का अंतरतम जागा
तत्क्षण उसने संसार को त्यागा

 

अब ना कभी वो उड़ने पाती
ना फूलों का रस पीने पाती
और जब देखती अज्ञानियों को उड़ते
तो शास्त्र का ज्ञान उन्हें देने जाती

 

झुके कंधों और थके चेहरे से
कभी कभी वो आकाश को तकती
उड़ते देख अन्य तितलियों को
मन मे उसके भी एक कसक सी उठती

 

पर उसका बुद्धिजीवी मन
तत्क्षण स्वयं को समझा लेता
कि यूँ उड़ना स्वच्छन्द आकाश में
क्या ज्ञानियों को है शोभा देता

 

जैसे जैसे समय गुज़रता
ख्याति उसकी बढ़ती जाती
दूर दूर से दर्शन हेतु
भक्तों चेलों की टोलियाँ आतीं

 

सड़ता जाता भीतर जीवन
अतृप्त वासना से घिरा रहता मन

 

पर सुन सुन के स्वयं की प्रशंसा
अहंकार को मिलती तृप्ति 
और जो आनंद से जीवन जीते थे
उनकी निंदा से मिलती थी शक्ति

 

यूँ ही तप और उपवासों से 
काटा उसने सारा जीवन
नैसर्गिक जो इच्छायें थीं
किया उन्हीं का सदा दमन

 

जब अंत निकट आया जीवन का
और भय पकड़ा मृत्यु दर्शन का

 

तब ख़ूब टटोला भीतर किन्तु
उधार ज्ञान कुछ काम ना आया
बासी और बोझिल जीवन की
स्मृतियों से मुख मुरझाया

 

भक्तों की भी भीड़ देखकर
भीतर कोई सांत्वना ना मिली
और ज्ञान व नीति के बोझ से दबकर
अंततः चल बसी वो महात्मा तितली 

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