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मैं बस लिखती हूँ

मैं बस लिखती हूँ
बग़ावत नहीं लिखती
कमाल नहीं लिखती
बस लिखती हूँ।


कभी इश्क़
कभी अश्क में
कभी गुरूर
कभी सुरूर में
कभी किसी फितूर में लिखती हूँ
बग़ावत नहीं, कमाल नहीं,
बस लिखती हूँ।


कभी हसरत
कभी बिसरत
कभी मसाफ़त
कभी कुरबत
कभी बैठ अंजुम तले फ़ुरसत में लिखती हूँ
बग़ावत नहीं , कमाल नहीं,
बस लिखती हूँ।


कभी ख़लिश
कभी कशिश
कभी हिकायत से
कभी रिवायत से
कभी अपनी ही किसी हिदायत से लिखती हूँ
बग़ावत नहीं, कमाल नहीं,
मैं बस लिखती हूँ।


कभी शुजाअत
कभी इबारत
कभी नाज़ में
कभी परवाज़ में
कभी खड़ी भीड़ की क़तार में लिखती हूँ
बग़ावत नहीं, कमाल नहीं,
बस लिखती हूँ।


कभी दरिया सा
कभी महदूद
कभी मोहब्बत
कभी महमूद
कभी चीख़ कर मेरे हुक़ूक़ लिखती हूँ
बग़ावत नहीं, कमाल नहीं,
बस लिखती हूँ।


कभी आरंभ
कभी आगाज़
कभी गीता
कभी नमाज़
कभी लम्हा इस हयात का लिखती हूँ
बग़ावत नहीं, कमाल नहीं,
बस लिखती हूँ।


कभी हर्ज देकर
कभी तंज़
कभी शौक़ में
कभी फ़र्ज़
कभी अपने ही ग़म का मर्ज़ लिखती हूँ,
बग़ावत नहीं, कमाल नहीं,
बस लिखती हूँ।


कभी फ़तह
कभी शिकस्त में
कभी मेरा ग़म
कभी तेरे शाद मे
किल्क लिखती रहे ये मेरी
इस मुराद में लिखती हूँ
बग़ावत नहीं, कमाल नहीं,
मैं बस लिखती हूँ।।

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