मैं भी इंसान हूँ
काव्य साहित्य | कविता ऋतम उपाध्याय15 Jul 2020 (अंक: 160, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
मैं भी तुम जैसा इंसान हूँ,
मुसीबतों से परेशान हूँ।
जिन्होंने, नहीं है मुझे सँभाला,
क्या मैं उनका क़द्रदान हूँ?
नीरसता भरी ज़िंदगानी में
देख लिया है मैंने ,
कौन कितना है पानी में ।
साथ रहने का भ्रम दिखा कर
झोंक दिया, दुःख से भरपूर सागर में
किनारा पा न सका
भरोसे के आँचल से।
बचाव की आस लगा कर
पलकें बिछाए देखता रहा सहारे की आस में
वहीं डूबता रहा मैं
भरे समाज में सबके सामने
पर न देख सका
किसी को आगे बढ़, हाथ थामते ।
समाज में किसी से
न रखो कभी इतनी क़रीबी,
जिनके पास रहे एक दूजे के लिए,
समय की ग़रीबी ।
रखो तुम ख़ुद से ही अपना वास्ता,
जिससे तुम पाओगे समाज में जीने का रास्ता।
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