मैं दीप किरण हूँ
काव्य साहित्य | कविता नीरज सक्सेना1 Jan 2020 (अंक: 147, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
तिमिर को भेदने की साधना
अंधकार मिटा हरूँ मैं वेदना
मैं ज्योति पुंज का निमित कण हूँ
प्रभा की आभा लिए मैं दीप किरण हूँ
रात्रि के उर को चाहता हूँ भेदना
इच्छित, धरा को प्रकाशमय देखना
नन्हा दीप सही किंतु मैं अडिग प्रण हूँ
प्रभा की आभा लिए मैं दीप किरण हूँ
दिनकर निरा निराश छाया रैन घना
नित सूर्य का तेज मद्धिम नहीं विडंबना
कांतपूर्ण मैं प्रज्वलित नन्हा सा अरुण हूँ
प्रभा की आभा लिए मैं दीप किरण हूँ
मेरी दीप्ति में आभा बिखेरती नवयौवना
नित निशा में प्रभा से शिशुओं में भरता चेतना
मानस हृदय बसता मैं तृप्त हर्षित क्षण हूँ
प्रभा की आभा लिए मैं दीप किरण हूँ
आरती के दीप बिन अपूर्ण, प्रभु उपासना
बनूँ देव देवालय शृंगार की मैं ज्योत्स्ना
कहूँ परमेश्वर से मैं सदा आपकी शरण हूँ
प्रभा की आभा लिए मैं दीप किरण हूँ
शलभ को अमरत्व देना, निज जीवन अर्चना
जगमग हेतु स्वीकारता अस्तित्व का मिटना
अपने संकल्पों में मैं सदा अटल अडिग प्रण हूँ
प्रभा की आभा लिए मैं दीप किरण हूँ
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