अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001


(गीत)

 

मैं दिनकर कवि का वंशज हूँ,
इतिहास बनाने आया हूँ।
रुधिर खौल कर ज्वाला हो,
वो गीत सुनाने आया हूँ।
 
1.
लोकतंत्र के प्रहरी सोते 
संसद के गलियारों में 
लुटें बेटियाँ रस्ते-रस्ते 
गली-गली चौबारों में। 
अदल - बदल कर मुखड़े अपने 
सत्ता का उपभोग करें। 
भ्रष्टाचारी रिश्वत खा कर 
ईमानों का योग करें। 
 
राजनीति की इस चौसर का 
राज बताने आया हूँ। 
 
2.
नहीं प्रेम के गीत सुनाता
मैं शहीद की बात लिखूँ। 
विरह -मिलन के गीत लिखो तुम
मैं शत्रु की घात लिखूँ। 
संगीनों के साये में जो 
प्राण निछावर करते हैं। 
सघन क्रांति का बीज लिए जो 
नहीं किसी से डरते हैं। 
 
अमर शहीदों की गाथा का 
गान सुनाने आया हूँ।
  
3.
गर्ज-गर्ज कर तुम हुंकारों 
कर्तव्यों की अनुशंसा हो। 
बाँहों में वारिधि को बाँधों 
खुली क्रांति की मंशा हो। 
उठो उठो भारत के पुत्रो 
जीवन का यशगान करो। 
भारत की पावन भूमि से 
दुष्टों का अवसान करो। 
 
हे भारत के युवा जगो अब 
रविगान सुनाने आया हूँ।
 
— क्रमशः
 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अंतहीन टकराहट
|

इस संवेदनशील शहर में, रहना किंतु सँभलकर…

अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
|

विदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…

अखिल विश्व के स्वामी राम
|

  अखिल विश्व के स्वामी राम भक्तों के…

अच्युत माधव
|

अच्युत माधव कृष्ण कन्हैया कैसे तुमको याद…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काव्य नाटक

गीत-नवगीत

कविता

दोहे

लघुकथा

कविता - हाइकु

नाटक

कविता-मुक्तक

वृत्तांत

हाइबुन

पुस्तक समीक्षा

चिन्तन

कविता - क्षणिका

हास्य-व्यंग्य कविता

गीतिका

सामाजिक आलेख

बाल साहित्य कविता

अनूदित कविता

साहित्यिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

कहानी

एकांकी

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

ग़ज़ल

बाल साहित्य लघुकथा

व्यक्ति चित्र

सिनेमा और साहित्य

किशोर साहित्य नाटक

ललित निबन्ध

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं