मैं ही कृष्ण, मैं ही हूँ राम
काव्य साहित्य | कविता कुणाल बरडिया15 Jun 2020 (अंक: 158, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
मैं ही कृष्ण, मैं ही हूँ राम
मुझमें ब्रह्म के चारों धाम
भीतर मन पर्वत सा स्थिर
बाहर पवन सा गतिमान
गगन से अनंत भी हूँ मैं ही
झील से गहरा मेरा गुणगान
मैं ही अंश परम शक्ति का
उसी से प्रचलित मेरा नाम
अजर अमर अविनाशी भी मैं
बदलता स्वरूप बिना विराम
कुरुक्षेत्र का केंद्र भी मैं ही
राम रूप भी स्थित मेरे भीतर
खड़ा हूँ लड़ने बनके योद्धा
करता कर्म निष्काम निरंतर
आर्यव्रत का है गौरव मुझमें
मैं भारतवंशी हूँ मनु संतान
मज़हब से परे जन्मा हूँ मैं
मैं ही सत्य सनातन ज्ञान
मैं ही कृष्ण, मैं ही हूँ राम
मुझमें ब्रह्म के चारों धाम
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